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Chapter 4: नन्हा फनकार

5th StandardHindi

Chapter Summary

नन्हा फनकार - Chapter Summary

# नन्हा फनकार - कहानी का सारांश

## कहानी का परिचय

यह कहानी 16वीं सदी के समय की है जब बादशाह अकबर सीकरी में नया शहर बनवा रहे थे। कहानी के केंद्र में है 10 वर्षीय केशव, जो एक कुशल पत्थर कलाकार है और अपने पिता के साथ संगतराशों के बीच काम करता है।

## मुख्य पात्र

**केशव**: 10 वर्षीय लड़का, जो पत्थर पर नक्काशी करने में निपुण है। गुजरात से आकर आगरा में बसे परिवार का सदस्य है।

**बादशाह अकबर**: मुगल सम्राट, जो विनम्र और कला प्रेमी के रूप में चित्रित है।

**केशव के माता-पिता**: गुजरात से आगरा आकर बसे संगतराश परिवार।

## कहानी का विस्तृत सारांश

### केशव का कार्य और कौशल

कहानी की शुरुआत में केशव एक चौकोर लाल पत्थर के पास बैठकर नक्काशी का काम कर रहा है। वह घंटियों की कतारें और कड़ियाँ उकेरने में व्यस्त है। केशव बहुत ही सावधानी से अपना काम करता है - हथौड़े की मार से पत्थर की किरचें छितराती हैं और वह आँखें सिकोड़ लेता है। साथ ही धीमी आवाज़ में कुछ गुनगुनाता भी रहता है।

### केशव का कलाकार व्यक्तित्व

केशव अपने काम को लेकर बहुत गंभीर है। वह सीधी लकीरों वाले और घुमावदार डिज़ाइन उकेर सकता है। उसे पता है कि घंटियों को बनाना सबसे मुश्किल काम है। केशव का सपना है कि एक दिन वह बारीक जालियाँ, महीन नक्काशी, बेल-बूटे, कमल के फूल, लहराते सांप और इठलाकर चलते घोड़े - ये सब पत्थर पर उकेर पाएगा, बिल्कुल उसके पिता की तरह।

### पारिवारिक पृष्ठभूमि

कई साल पहले, केशव के पैदा होने से पहले ही, उसके माता-पिता गुजरात से आगरा आकर बस गए थे। बादशाह अकबर उस समय आगरे का किला बनवा रहे थे और केशव के पिता को यहाँ काम मिल गया था। केशव का जन्म भी आगरे में ही हुआ था।

### अकबर की पहली मुलाकात

जब केशव अपने काम में मग्न था, अचानक उसे किसी की आवाज़ सुनाई दी - "माशा अल्लाह! ये घंटियाँ कितनी सुंदर हैं! तुमने खुद बनाई हैं?" पीछे मुड़कर केशव ने देखा तो एक आदमी खड़ा था। केशव ने तल्खी से जवाब दिया कि हाँ, उसने ही ये घंटियाँ बनाई हैं।

### अकबर का व्यक्तित्व वर्णन

वह आदमी तीस से ऊपर की उम्र का, मध्यम कद का था। उसने सफेद अंगरखा और पाजामा पहन रखा था। उसके लंबे बाल गहरे लाल रंग की पगड़ी में अच्छी तरह से ढके हुए थे। उसके गले में बड़े मोतियों की माला और उंगलियों में अंगूठियाँ थीं। उसकी तीखी नाक, बड़ी आँखें और मूंछें थीं।

### पहरेदार का आना

तभी महल का पहरेदार दौड़ता हुआ आया और कहा - "हुजूर! माफ करें। मुझे आपके आने का पता ही नहीं चला।" फिर उसने केशव को घूरते हुए कहा - "बेवकूफ, खड़ा हो! हुजूरे आला के सामने बैठने की जुर्रत कैसे की तूने!" तब केशव को समझ आया कि यह कोई बहुत बड़ा आदमी है। उसने झुककर सलाम किया।

### अकबर की विनम्रता

अकबर को पहरेदार की यह दखलअंदाजी भली नहीं लगी। उन्होंने खीझकर पहरेदार को वहाँ से जाने का इशारा किया। केशव असमंजस में था कि उसे क्या करना चाहिए। लेकिन अकबर प्यार से उसे देखकर मुस्करा रहे थे।

### तेजी से दोस्ती

अकबर ने केशव से कहा - "हुजूर! माफ करो। मुझे आपके आने का पता ही नहीं चला।" फिर वह मुस्करकर बोले - "बेवकूफ, खड़ा हो! हुजूरे आला के सामने बैठने की जुर्रत कैसे की तूने!" केशव का माथा ठनका। अब उसे समझ आ रहा था। उसने झुककर सलाम किया।

### नक्काशी सीखने की इच्छा

अकबर ने केशव से पूछा - "तुम्हारा नाम क्या है?" केशव ने जवाब दिया। फिर अकबर ने पूछा - "केशव, क्या तुम मुझे नक्काशी करना सिखाओगे?" केशव ने तुरंत सिर हिला दिया। अकबर ने कहा - "तब तो तुम्हें मेरे लिए हथौड़े और छेनी का भी इंतज़ाम करना होगा।"

### सीखने की प्रक्रिया

केशव फुर्ती से अपने पिता के पास भागा और उनका छेनी-हथौड़ा लेकर वापस आया। दोस्ताना अंदाज़ में अकबर केशव के पास ज़मीन पर बैठ गए। केशव ने अकबर को छेनी पकड़ने का सही तरीका सिखाया। कोयले के टुकड़े से पत्थर पर लकीरें खींचकर आसान नमूना बनाया।

### गलती और सुधार

अकबर ने पत्थर पर छेनी रखी और जोर से हथौड़े से वार किया, जिससे कटाव ज्यादा गहरा हो गया। केशव ने तुरंत गलती पकड़ी और कहा - "अरे, नहीं! हथौड़े को आहिस्ता से मारना है। और हाँ, आँखें थोड़ी मींचकर रखें वरना किरचें आँखों में चली जाएंगी।"

### नाम पूछना

अकबर ने पूछा - "तुम्हारा नाम क्या है?" केशव ने जवाब दिया। फिर अकबर ने पूछा - "केशव, क्या तुम मुझे नक्काशी करना सिखाओगे?" केशव ने उलझन में पड़कर तुरंत सिर हिला दिया। अकबर ने कहा - "तब तो तुम्हें मेरे लिए हथौड़े और छेनी का भी इंतज़ाम करना होगा।"

### काम सीखने की बात

केशव अभी भी असमंजस की स्थिति में था। अकबर ने उसे धैर्य दिलाया। अकबर ने कहा - "क्यों नहीं! मुझे तो विश्वास है कि मैं सीख ही लूंगा।" केशव ने कहा - "नहीं, मेरा मतलब ये नहीं था। दरअसल मैं कहना चाहता था कि आप इतने बड़े बादशाह हैं। ये ठीक नहीं लगता।"

### अकबर की सरलता

अकबर हंसकर बोले - "अच्छा, लेकिन पिछले हफ्ते तो मैंने मिट्टी से भरी डलिया ढोने में किसी की मदद की थी। क्या यह काम उससे भी ज्यादा मुश्किल है?" केशव अभी भी असमंजस में था। वह अकबर के पास बैठ गया और उन्हें छेनी पकड़ने का सही तरीका सिखाने लगा।

### कारखाने की योजना

अकबर ने केशव से कहा - "केशव, देखना, एक दिन तुम बड़े फनकार बनोगे। हो सकता है कि एक दिन तुम मेरे कारखाने में काम करो।" केशव ने पूछा - "कारखाना? कैसा कारखाना?" अकबर ने समझाया - "बस एक बार ये महल तैयार हो जाए और लोग आगरा से आकर यहाँ रहने लगें, तब मैं कारखाने बनवाऊंगा।"

### कारखाने का विवरण

अकबर ने आगे बताया - "इन कारखानों में मेरी सल्तनत के सबसे बढ़िया फनकार और शिल्पकार काम करेंगे। चित्र बनाने वाले कलाकार, गलीचों के बुनकर, संगतराश, पत्थर और लकड़ी पर नक्काशी करने वाले शिल्पकार सभी वहाँ काम करेंगे।" केशव का चेहरा चमक उठा।

### भविष्य की योजना

केशव ने उत्साह से कहा - "मैं वहाँ जरूर काम करना चाहूंगा।" जवाब में केशव भी मुस्करा उठा। उसे लगभग भूल ही गया था कि उसके बगल में बैठा यह व्यक्ति हिंदुस्तान का बादशाह है। एक अनाड़ी व्यस्क पर अपने काम की धाक जमाने में उसे मजा आ रहा था।

### दिन का अंत

दिन भर के काम के बाद अकबर उठ खड़े हुए। जाते हुए बड़े प्यार से केशव का कंधा थपथपाया और कहा - "अच्छा बेटा, अपना काम जारी रखो।" केशव ने बड़ी उत्सुकता से पूछा - "हुजूर! क्या आप दुबारा आएंगे?" अकबर ने जवाब दिया - "मैं जरूर आऊंगा केशव!"

### केशव की प्रसिद्धि

पूरे दिन संगतराशों के बीच केशव की धूम मची रही। वह बार-बार बादशाह से हुई अपनी मुलाकात सबको सुनाता रहा। रात हो चली थी। केशव बहुत थका हुआ था, लेकिन आँखों में नींद कहाँ! वह धीरे से अपने पिता के बिस्तर में घुस गया।

### पिता से बातचीत

केशव ने अपने पिता से कहा - "बादशाह सलामत ने कहा है कि एक दिन मैं बहुत बड़ा कलाकार बनूंगा।" अपने सिर को पिता की बांहों के सहारे टिकाकर केशव धीरे से बोला - "हमारे बादशाह बहुत ही नेक इंसान हैं।" पिता ने कहा - "बिल्कुल सही।"

### सीकरी का इतिहास

केशव ने कुछ सोचकर पूछा - "बाबा, एक बात बताओ, बादशाह के पास आगरा में एक से बढ़कर एक खूबसूरत महल हैं। फिर वे सीकरी में यह शहर क्यों बनवा रहे हैं?" पिता ने समझाया - "हाँ बेटा, बादशाह का आगरा बहुत सुंदर शहर है। लेकिन सीकरी में नया शहर बनवाने का भी एक खास कारण है।"

### खवाजा सलीम चिश्ती की कहानी

पिता ने आगे बताया - "मैंने सुना है कि जब बादशाह अकबर की कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे हर वक्त परेशान रहते थे। वे बहुत से साधु-संतों और फकीरों के पास गए। भटकते-भटकते बादशाह खवाजा सलीम चिश्ती के पास सीकरी आए। उन्होंने ही बादशाह को बताया कि उनके एक नहीं तीन-तीन संतानें होंगी।"

### राजकुमारों के नाम

केशव ने चहकते हुए कहा - "शाहजादा सलीम, मुराद और दानियाल।" पिता ने कहा - "बिल्कुल सही। तब बादशाह ने खवाजा सलीम चिश्ती के सम्मान में सीकरी में नगर बसाने का फैसला किया था।" केशव ने कहा - "अच्छा! अब समझा। इसीलिए बादशाह अकबर ने अपने बेटे का नाम सलीम रखा है। और इसी कारण हम यहाँ एक नए शहर के लिए पत्थरों को तराश रहे हैं।"

### कहानी का अंत

अंत में केशव उनींदी आवाज़ में बोला - "हुं..." और सो गया। पिताजी ने देखा कि उनका लाडला बेटा सो गया है। अकबर उठ खड़े हुए। जाते हुए बड़े प्यार से केशव का कंधा थपथपाया और कहा - "अच्छा बेटा, अपना काम जारी रखो।"

## कहानी के मुख्य संदेश

1. **कला की महत्ता**: छोटी उम्र में भी कलाकार बनने की संभावना
2. **विनम्रता का महत्व**: बादशाह अकबर की सरलता और विनम्रता
3. **सीखने की इच्छा**: हर उम्र में कुछ नया सीखने की चाह
4. **सपनों का महत्व**: केशव के कलाकार बनने के सपने
5. **सामाजिक समानता**: राजा और प्रजा के बीच मित्रता

## नए शब्दों की व्याख्या

**संगतराश**: Stone carver - पत्थर पर नक्काशी करने वाला कलाकार

**नक्काशी**: Engraving/Carving - पत्थर, लकड़ी आदि पर चित्र या डिजाइन बनाना

**फनकार**: Artist - कलाकार, शिल्पकार

**हथौड़ा**: Hammer - ठोकने वाला औजार

**छेनी**: Chisel - पत्थर काटने का नुकीला औजार

**कड़ियाँ**: Links - जंजीर की कड़ियाँ

**किरचें**: Splinters - टूटे हुए छोटे टुकड़े

**अंगरखा**: Traditional long coat - पारंपरिक लंबा कोट

**पाजामा**: Loose trousers - ढीला पायजामा

**माशा अल्लाह**: What God has willed - अल्लाह की मर्जी (प्रशंसा सूचक)

**दखलअंदाजी**: Interference - बीच में बोलना या दखल देना

**असमंजस**: Confusion - उलझन की स्थिति

**कारखाना**: Workshop - शिल्पकारों का कार्यस्थल

**सल्तनत**: Kingdom - राज्य, शासन क्षेत्र

नन्हा फनकार - कहानी का सारांश

कहानी का परिचय

यह कहानी 16वीं सदी के समय की है जब बादशाह अकबर सीकरी में नया शहर बनवा रहे थे। कहानी के केंद्र में है 10 वर्षीय केशव, जो एक कुशल पत्थर कलाकार है और अपने पिता के साथ संगतराशों के बीच काम करता है।

मुख्य पात्र

केशव: 10 वर्षीय लड़का, जो पत्थर पर नक्काशी करने में निपुण है। गुजरात से आकर आगरा में बसे परिवार का सदस्य है।

बादशाह अकबर: मुगल सम्राट, जो विनम्र और कला प्रेमी के रूप में चित्रित है।

केशव के माता-पिता: गुजरात से आगरा आकर बसे संगतराश परिवार।

कहानी का विस्तृत सारांश

केशव का कार्य और कौशल

कहानी की शुरुआत में केशव एक चौकोर लाल पत्थर के पास बैठकर नक्काशी का काम कर रहा है। वह घंटियों की कतारें और कड़ियाँ उकेरने में व्यस्त है। केशव बहुत ही सावधानी से अपना काम करता है - हथौड़े की मार से पत्थर की किरचें छितराती हैं और वह आँखें सिकोड़ लेता है। साथ ही धीमी आवाज़ में कुछ गुनगुनाता भी रहता है।

केशव का कलाकार व्यक्तित्व

केशव अपने काम को लेकर बहुत गंभीर है। वह सीधी लकीरों वाले और घुमावदार डिज़ाइन उकेर सकता है। उसे पता है कि घंटियों को बनाना सबसे मुश्किल काम है। केशव का सपना है कि एक दिन वह बारीक जालियाँ, महीन नक्काशी, बेल-बूटे, कमल के फूल, लहराते सांप और इठलाकर चलते घोड़े - ये सब पत्थर पर उकेर पाएगा, बिल्कुल उसके पिता की तरह।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

कई साल पहले, केशव के पैदा होने से पहले ही, उसके माता-पिता गुजरात से आगरा आकर बस गए थे। बादशाह अकबर उस समय आगरे का किला बनवा रहे थे और केशव के पिता को यहाँ काम मिल गया था। केशव का जन्म भी आगरे में ही हुआ था।

अकबर की पहली मुलाकात

जब केशव अपने काम में मग्न था, अचानक उसे किसी की आवाज़ सुनाई दी - "माशा अल्लाह! ये घंटियाँ कितनी सुंदर हैं! तुमने खुद बनाई हैं?" पीछे मुड़कर केशव ने देखा तो एक आदमी खड़ा था। केशव ने तल्खी से जवाब दिया कि हाँ, उसने ही ये घंटियाँ बनाई हैं।

अकबर का व्यक्तित्व वर्णन

वह आदमी तीस से ऊपर की उम्र का, मध्यम कद का था। उसने सफेद अंगरखा और पाजामा पहन रखा था। उसके लंबे बाल गहरे लाल रंग की पगड़ी में अच्छी तरह से ढके हुए थे। उसके गले में बड़े मोतियों की माला और उंगलियों में अंगूठियाँ थीं। उसकी तीखी नाक, बड़ी आँखें और मूंछें थीं।

पहरेदार का आना

तभी महल का पहरेदार दौड़ता हुआ आया और कहा - "हुजूर! माफ करें। मुझे आपके आने का पता ही नहीं चला।" फिर उसने केशव को घूरते हुए कहा - "बेवकूफ, खड़ा हो! हुजूरे आला के सामने बैठने की जुर्रत कैसे की तूने!" तब केशव को समझ आया कि यह कोई बहुत बड़ा आदमी है। उसने झुककर सलाम किया।

अकबर की विनम्रता

अकबर को पहरेदार की यह दखलअंदाजी भली नहीं लगी। उन्होंने खीझकर पहरेदार को वहाँ से जाने का इशारा किया। केशव असमंजस में था कि उसे क्या करना चाहिए। लेकिन अकबर प्यार से उसे देखकर मुस्करा रहे थे।

तेजी से दोस्ती

अकबर ने केशव से कहा - "हुजूर! माफ करो। मुझे आपके आने का पता ही नहीं चला।" फिर वह मुस्करकर बोले - "बेवकूफ, खड़ा हो! हुजूरे आला के सामने बैठने की जुर्रत कैसे की तूने!" केशव का माथा ठनका। अब उसे समझ आ रहा था। उसने झुककर सलाम किया।

नक्काशी सीखने की इच्छा

अकबर ने केशव से पूछा - "तुम्हारा नाम क्या है?" केशव ने जवाब दिया। फिर अकबर ने पूछा - "केशव, क्या तुम मुझे नक्काशी करना सिखाओगे?" केशव ने तुरंत सिर हिला दिया। अकबर ने कहा - "तब तो तुम्हें मेरे लिए हथौड़े और छेनी का भी इंतज़ाम करना होगा।"

सीखने की प्रक्रिया

केशव फुर्ती से अपने पिता के पास भागा और उनका छेनी-हथौड़ा लेकर वापस आया। दोस्ताना अंदाज़ में अकबर केशव के पास ज़मीन पर बैठ गए। केशव ने अकबर को छेनी पकड़ने का सही तरीका सिखाया। कोयले के टुकड़े से पत्थर पर लकीरें खींचकर आसान नमूना बनाया।

गलती और सुधार

अकबर ने पत्थर पर छेनी रखी और जोर से हथौड़े से वार किया, जिससे कटाव ज्यादा गहरा हो गया। केशव ने तुरंत गलती पकड़ी और कहा - "अरे, नहीं! हथौड़े को आहिस्ता से मारना है। और हाँ, आँखें थोड़ी मींचकर रखें वरना किरचें आँखों में चली जाएंगी।"

नाम पूछना

अकबर ने पूछा - "तुम्हारा नाम क्या है?" केशव ने जवाब दिया। फिर अकबर ने पूछा - "केशव, क्या तुम मुझे नक्काशी करना सिखाओगे?" केशव ने उलझन में पड़कर तुरंत सिर हिला दिया। अकबर ने कहा - "तब तो तुम्हें मेरे लिए हथौड़े और छेनी का भी इंतज़ाम करना होगा।"

काम सीखने की बात

केशव अभी भी असमंजस की स्थिति में था। अकबर ने उसे धैर्य दिलाया। अकबर ने कहा - "क्यों नहीं! मुझे तो विश्वास है कि मैं सीख ही लूंगा।" केशव ने कहा - "नहीं, मेरा मतलब ये नहीं था। दरअसल मैं कहना चाहता था कि आप इतने बड़े बादशाह हैं। ये ठीक नहीं लगता।"

अकबर की सरलता

अकबर हंसकर बोले - "अच्छा, लेकिन पिछले हफ्ते तो मैंने मिट्टी से भरी डलिया ढोने में किसी की मदद की थी। क्या यह काम उससे भी ज्यादा मुश्किल है?" केशव अभी भी असमंजस में था। वह अकबर के पास बैठ गया और उन्हें छेनी पकड़ने का सही तरीका सिखाने लगा।

कारखाने की योजना

अकबर ने केशव से कहा - "केशव, देखना, एक दिन तुम बड़े फनकार बनोगे। हो सकता है कि एक दिन तुम मेरे कारखाने में काम करो।" केशव ने पूछा - "कारखाना? कैसा कारखाना?" अकबर ने समझाया - "बस एक बार ये महल तैयार हो जाए और लोग आगरा से आकर यहाँ रहने लगें, तब मैं कारखाने बनवाऊंगा।"

कारखाने का विवरण

अकबर ने आगे बताया - "इन कारखानों में मेरी सल्तनत के सबसे बढ़िया फनकार और शिल्पकार काम करेंगे। चित्र बनाने वाले कलाकार, गलीचों के बुनकर, संगतराश, पत्थर और लकड़ी पर नक्काशी करने वाले शिल्पकार सभी वहाँ काम करेंगे।" केशव का चेहरा चमक उठा।

भविष्य की योजना

केशव ने उत्साह से कहा - "मैं वहाँ जरूर काम करना चाहूंगा।" जवाब में केशव भी मुस्करा उठा। उसे लगभग भूल ही गया था कि उसके बगल में बैठा यह व्यक्ति हिंदुस्तान का बादशाह है। एक अनाड़ी व्यस्क पर अपने काम की धाक जमाने में उसे मजा आ रहा था।

दिन का अंत

दिन भर के काम के बाद अकबर उठ खड़े हुए। जाते हुए बड़े प्यार से केशव का कंधा थपथपाया और कहा - "अच्छा बेटा, अपना काम जारी रखो।" केशव ने बड़ी उत्सुकता से पूछा - "हुजूर! क्या आप दुबारा आएंगे?" अकबर ने जवाब दिया - "मैं जरूर आऊंगा केशव!"

केशव की प्रसिद्धि

पूरे दिन संगतराशों के बीच केशव की धूम मची रही। वह बार-बार बादशाह से हुई अपनी मुलाकात सबको सुनाता रहा। रात हो चली थी। केशव बहुत थका हुआ था, लेकिन आँखों में नींद कहाँ! वह धीरे से अपने पिता के बिस्तर में घुस गया।

पिता से बातचीत

केशव ने अपने पिता से कहा - "बादशाह सलामत ने कहा है कि एक दिन मैं बहुत बड़ा कलाकार बनूंगा।" अपने सिर को पिता की बांहों के सहारे टिकाकर केशव धीरे से बोला - "हमारे बादशाह बहुत ही नेक इंसान हैं।" पिता ने कहा - "बिल्कुल सही।"

सीकरी का इतिहास

केशव ने कुछ सोचकर पूछा - "बाबा, एक बात बताओ, बादशाह के पास आगरा में एक से बढ़कर एक खूबसूरत महल हैं। फिर वे सीकरी में यह शहर क्यों बनवा रहे हैं?" पिता ने समझाया - "हाँ बेटा, बादशाह का आगरा बहुत सुंदर शहर है। लेकिन सीकरी में नया शहर बनवाने का भी एक खास कारण है।"

खवाजा सलीम चिश्ती की कहानी

पिता ने आगे बताया - "मैंने सुना है कि जब बादशाह अकबर की कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे हर वक्त परेशान रहते थे। वे बहुत से साधु-संतों और फकीरों के पास गए। भटकते-भटकते बादशाह खवाजा सलीम चिश्ती के पास सीकरी आए। उन्होंने ही बादशाह को बताया कि उनके एक नहीं तीन-तीन संतानें होंगी।"

राजकुमारों के नाम

केशव ने चहकते हुए कहा - "शाहजादा सलीम, मुराद और दानियाल।" पिता ने कहा - "बिल्कुल सही। तब बादशाह ने खवाजा सलीम चिश्ती के सम्मान में सीकरी में नगर बसाने का फैसला किया था।" केशव ने कहा - "अच्छा! अब समझा। इसीलिए बादशाह अकबर ने अपने बेटे का नाम सलीम रखा है। और इसी कारण हम यहाँ एक नए शहर के लिए पत्थरों को तराश रहे हैं।"

कहानी का अंत

अंत में केशव उनींदी आवाज़ में बोला - "हुं..." और सो गया। पिताजी ने देखा कि उनका लाडला बेटा सो गया है। अकबर उठ खड़े हुए। जाते हुए बड़े प्यार से केशव का कंधा थपथपाया और कहा - "अच्छा बेटा, अपना काम जारी रखो।"

कहानी के मुख्य संदेश

  1. कला की महत्ता: छोटी उम्र में भी कलाकार बनने की संभावना
  2. विनम्रता का महत्व: बादशाह अकबर की सरलता और विनम्रता
  3. सीखने की इच्छा: हर उम्र में कुछ नया सीखने की चाह
  4. सपनों का महत्व: केशव के कलाकार बनने के सपने
  5. सामाजिक समानता: राजा और प्रजा के बीच मित्रता

नए शब्दों की व्याख्या

संगतराश: Stone carver - पत्थर पर नक्काशी करने वाला कलाकार

नक्काशी: Engraving/Carving - पत्थर, लकड़ी आदि पर चित्र या डिजाइन बनाना

फनकार: Artist - कलाकार, शिल्पकार

हथौड़ा: Hammer - ठोकने वाला औजार

छेनी: Chisel - पत्थर काटने का नुकीला औजार

कड़ियाँ: Links - जंजीर की कड़ियाँ

किरचें: Splinters - टूटे हुए छोटे टुकड़े

अंगरखा: Traditional long coat - पारंपरिक लंबा कोट

पाजामा: Loose trousers - ढीला पायजामा

माशा अल्लाह: What God has willed - अल्लाह की मर्जी (प्रशंसा सूचक)

दखलअंदाजी: Interference - बीच में बोलना या दखल देना

असमंजस: Confusion - उलझन की स्थिति

कारखाना: Workshop - शिल्पकारों का कार्यस्थल

सल्तनत: Kingdom - राज्य, शासन क्षेत्र