Chapter 7: डाकिया की कहानी कंवरसिंह की जुबानी
Chapter Summary
डाकिया की कहानी कंवरसिंह की जुबानी - Chapter Summary
यह कहानी हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गांव के निवासी डाकिया केवरसिंह के साक्षात्कार पर आधारित है। केवरसिंह 45 वर्षीय हैं और वर्तमान में शिमला के मॉल रोड पर जनरल पोस्ट ऑफिस में पैकर के रूप में कार्य करते हैं। वे सरकार द्वारा पुरस्कृत डाकिया हैं।
## पारिवारिक पृष्ठभूमि
केवरसिंह के परिवार में चार बच्चे हैं - तीन लड़कियां और एक लड़का। दो लड़कियों की शादी हो चुकी है। उनका एक बेटा था जो पहाड़ से लकड़ियां लाते समय गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उनकी एक लड़की दसवीं तक पढ़ी है, दूसरी बारहवीं तक, तीसरी लड़की बारहवीं कक्षा में पढ़ रही है और बेटा दसवीं में पढ़ता है।
## पहाड़ी जीवन की चुनौतियां
हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में जीवन अत्यंत कठिन है। यहाँ हर साल तिरछी ढलानों या ढांकों से घास काटते हुए कई औरतें गिरकर मर जाती हैं। इन क्षेत्रों में बस सेवा नहीं पहुंच पाती और हजारों गांव ऐसे हैं जहाँ केवल पैदल चलकर ही पहुंचा जा सकता है। बच्चे गांव के स्कूल में पढ़ने जाते हैं जो लगभग पांच किलोमीटर दूर है।
## डाक सेवा का महत्व
केवरसिंह पहले भारतीय डाक सेवा में ग्रामीण डाक सेवक थे, अब पैकर बन गए हैं। उनका काम चिट्ठियां, रजिस्ट्री पत्र, पार्सल, बिल, बुजुर्गों की पेंशन आदि छोड़ने गांव-गांव जाना है। शहरों में भले ही संदेश भेजने के कई आधुनिक साधन आ गए हों जैसे फोन, मोबाइल, ई-मेल आदि, लेकिन गांवों में आज भी संदेश पहुंचाने का सबसे बड़ा जरिया डाक ही है।
## भारतीय डाक सेवा की विशेषताएं
भारत की डाक सेवा आज भी दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे सस्ती डाक सेवा है। केवल पांच रुपए में देश के किसी भी कोने में चिट्ठी भेजी जा सकती है। पोस्टकार्ड तो केवल पचास पैसे का ही है।
## काम में आने वाली खुशी
केवरसिंह को अपनी नौकरी बहुत अच्छी लगती है। जब वे दूर नौकरी करने वाले सिपाही का मनीऑर्डर लेकर उसके घर पहुंचाते हैं तो उसके बुजुर्ग माता-पिता का खुशी भरा चेहरा देखने को मिलता है। रजिस्ट्री पत्र पहुंचाने पर जिसमें कभी रिजल्ट, कभी नियुक्ति पत्र होता है तो लोग बहुत खुश होते हैं। बुजुर्ग दादा-दादी पेंशन के पैसे मिलने पर बहुत खुश होते हैं।
## कार्य की कठिनाइयां
केवरसिंह ने शुरुआत में लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गांव में तीन साल तक काम किया। यह हिमाचल का सबसे ऊंचा गांव है। इसके बाद पांच साल तक काज़ा में और पांच साल तक किन्नौर जिले में नौकरी की। उस समय इन गांवों में टेलीफोन नहीं थे और बसें भी सिर्फ मुख्यालयों तक ही जाती थीं।
## पहाड़ी क्षेत्रों में डाक पहुंचाने की मुश्किलें
किन्नौर और लाहौल स्पीति हिमाचल प्रदेश के बहुत ठंडे तथा ऊंचे जिले हैं। इन जिलों में अप्रैल महीने में भी बर्फबारी हो जाती है। बर्फ में चलते हुए पैरों को ठंड से बचाना पड़ता है वरना स्नोबाइट हो जाते हैं जिससे उंगलियां नीली पड़ जाती हैं और गैंग्रीन हो जाती है। इन जिलों में एक घर से दूसरे घर तक डाक पहुंचाने के लिए लगभग 26 किलोमीटर रोजाना चलना पड़ता था।
## प्रोन्नति और वेतन
पैकर के बाद डाकिया बन सकते हैं, बस एक इम्तिहान पास करना पड़ता है। अभी तो काम के हिसाब से वेतन काफी कम रहता है। डाकिए का वेतन बाबू के जितना ही होता है लेकिन मेहनत कहीं ज्यादा करनी पड़ती है।
## करियर की शुरुआत
केवरसिंह ने शुरुआत में लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गांव में तीन साल तक नौकरी की। यह हिमाचल का सबसे ऊंचा गांव है। इसके बाद पांच साल तक इसी जिले के काज़ा में और पांच साल तक किन्नौर जिले में नौकरी की। उस समय इन गांवों में टेलीफोन नहीं थे और बसें भी सिर्फ मुख्यालयों तक ही जाती थीं।
## एक खास घटना - डकैती की घटना
1998 की बात है जब केवरसिंह का तबादला शिमला के जनरल पोस्ट ऑफिस में हो गया था। उन्हें रात के समय रेस्ट हाउस और पोस्ट ऑफिस की चौकीदारी का काम दिया गया था। 29 जनवरी की रात लगभग साढ़े दस बजे बाहर से किसी ने पोस्ट ऑफिस का दरवाजा खटखटाया। जब उन्होंने दरवाजा खोला तो अचानक पांच-छह लोग अंदर घुसे और उन्हें पीटना शुरू कर दिया।
डकैतों ने सारी लाइटें बंद कर दीं और केवरसिंह के सिर पर किसी भारी चीज से कई बार मारा जिससे उनका सिर फट गया। वे लगातार चिल्लाते रहे और बेहोश हो गए। अगले दिन जब होश आया तो वे शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में दाखिल थे। उनके 17 साल के बेटे ने बताया कि उनकी चिल्लाने की आवाज सुनकर लड़का और ऑफिस के दूसरे लोगों ने दरवाजों के शीशे तोड़कर अंदर आकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया।
## सरकारी सम्मान
सरकार ने केवरसिंह को जान पर खेलकर डाक की चीजें बचाने के लिए 'बेस्ट पोस्टमैन' का इनाम दिया। यह इनाम 2004 में मिला। इस इनाम में 500 रुपए और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। वे और उनका परिवार बहुत खुश हुए। आज भी वे गर्व से कहते हैं - "मैं बेस्ट पोस्ट मैन हूं।"
## भविष्य की चिंताएं
अब डाकिए की नौकरी में लगना भी बहुत मुश्किल हो चुका है। जितने डाकिए रिटायर हो चुके हैं उनकी जगह नए डाकियों को नहीं रखा जा रहा है। इससे पुराने डाकियों पर काम का बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
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## नए शब्दों के अर्थ:
**पैकर** - डाकघर में डाक को छांटने और व्यवस्थित करने वाला कर्मचारी
**ग्रामीण डाक सेवक** - गांवों में डाक पहुंचाने वाला डाकिया
**मनीऑर्डर** - पैसे भेजने का एक सुरक्षित तरीका
**रजिस्ट्री पत्र** - पंजीकृत चिट्ठी जिसकी रसीद मिलती है
**स्नोबाइट** - बर्फ के कारण शरीर के अंगों का जमना
**गैंग्रीन** - शरीर के किसी हिस्से का सड़ना
**तबादला** - एक जगह से दूसरी जगह काम पर भेजना
**प्रशस्ति पत्र** - सम्मान का प्रमाण पत्र
**रिटायर** - सेवानिवृत्त होना
डाकिया केवरसिंह का परिचय
यह कहानी हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गांव के निवासी डाकिया केवरसिंह के साक्षात्कार पर आधारित है। केवरसिंह 45 वर्षीय हैं और वर्तमान में शिमला के मॉल रोड पर जनरल पोस्ट ऑफिस में पैकर के रूप में कार्य करते हैं। वे सरकार द्वारा पुरस्कृत डाकिया हैं।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
केवरसिंह के परिवार में चार बच्चे हैं - तीन लड़कियां और एक लड़का। दो लड़कियों की शादी हो चुकी है। उनका एक बेटा था जो पहाड़ से लकड़ियां लाते समय गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उनकी एक लड़की दसवीं तक पढ़ी है, दूसरी बारहवीं तक, तीसरी लड़की बारहवीं कक्षा में पढ़ रही है और बेटा दसवीं में पढ़ता है।
पहाड़ी जीवन की चुनौतियां
हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में जीवन अत्यंत कठिन है। यहाँ हर साल तिरछी ढलानों या ढांकों से घास काटते हुए कई औरतें गिरकर मर जाती हैं। इन क्षेत्रों में बस सेवा नहीं पहुंच पाती और हजारों गांव ऐसे हैं जहाँ केवल पैदल चलकर ही पहुंचा जा सकता है। बच्चे गांव के स्कूल में पढ़ने जाते हैं जो लगभग पांच किलोमीटर दूर है।
डाक सेवा का महत्व
केवरसिंह पहले भारतीय डाक सेवा में ग्रामीण डाक सेवक थे, अब पैकर बन गए हैं। उनका काम चिट्ठियां, रजिस्ट्री पत्र, पार्सल, बिल, बुजुर्गों की पेंशन आदि छोड़ने गांव-गांव जाना है। शहरों में भले ही संदेश भेजने के कई आधुनिक साधन आ गए हों जैसे फोन, मोबाइल, ई-मेल आदि, लेकिन गांवों में आज भी संदेश पहुंचाने का सबसे बड़ा जरिया डाक ही है।
भारतीय डाक सेवा की विशेषताएं
भारत की डाक सेवा आज भी दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे सस्ती डाक सेवा है। केवल पांच रुपए में देश के किसी भी कोने में चिट्ठी भेजी जा सकती है। पोस्टकार्ड तो केवल पचास पैसे का ही है।
काम में आने वाली खुशी
केवरसिंह को अपनी नौकरी बहुत अच्छी लगती है। जब वे दूर नौकरी करने वाले सिपाही का मनीऑर्डर लेकर उसके घर पहुंचाते हैं तो उसके बुजुर्ग माता-पिता का खुशी भरा चेहरा देखने को मिलता है। रजिस्ट्री पत्र पहुंचाने पर जिसमें कभी रिजल्ट, कभी नियुक्ति पत्र होता है तो लोग बहुत खुश होते हैं। बुजुर्ग दादा-दादी पेंशन के पैसे मिलने पर बहुत खुश होते हैं।
कार्य की कठिनाइयां
केवरसिंह ने शुरुआत में लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गांव में तीन साल तक काम किया। यह हिमाचल का सबसे ऊंचा गांव है। इसके बाद पांच साल तक काज़ा में और पांच साल तक किन्नौर जिले में नौकरी की। उस समय इन गांवों में टेलीफोन नहीं थे और बसें भी सिर्फ मुख्यालयों तक ही जाती थीं।
पहाड़ी क्षेत्रों में डाक पहुंचाने की मुश्किलें
किन्नौर और लाहौल स्पीति हिमाचल प्रदेश के बहुत ठंडे तथा ऊंचे जिले हैं। इन जिलों में अप्रैल महीने में भी बर्फबारी हो जाती है। बर्फ में चलते हुए पैरों को ठंड से बचाना पड़ता है वरना स्नोबाइट हो जाते हैं जिससे उंगलियां नीली पड़ जाती हैं और गैंग्रीन हो जाती है। इन जिलों में एक घर से दूसरे घर तक डाक पहुंचाने के लिए लगभग 26 किलोमीटर रोजाना चलना पड़ता था।
प्रोन्नति और वेतन
पैकर के बाद डाकिया बन सकते हैं, बस एक इम्तिहान पास करना पड़ता है। अभी तो काम के हिसाब से वेतन काफी कम रहता है। डाकिए का वेतन बाबू के जितना ही होता है लेकिन मेहनत कहीं ज्यादा करनी पड़ती है।
करियर की शुरुआत
केवरसिंह ने शुरुआत में लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गांव में तीन साल तक नौकरी की। यह हिमाचल का सबसे ऊंचा गांव है। इसके बाद पांच साल तक इसी जिले के काज़ा में और पांच साल तक किन्नौर जिले में नौकरी की। उस समय इन गांवों में टेलीफोन नहीं थे और बसें भी सिर्फ मुख्यालयों तक ही जाती थीं।
एक खास घटना - डकैती की घटना
1998 की बात है जब केवरसिंह का तबादला शिमला के जनरल पोस्ट ऑफिस में हो गया था। उन्हें रात के समय रेस्ट हाउस और पोस्ट ऑफिस की चौकीदारी का काम दिया गया था। 29 जनवरी की रात लगभग साढ़े दस बजे बाहर से किसी ने पोस्ट ऑफिस का दरवाजा खटखटाया। जब उन्होंने दरवाजा खोला तो अचानक पांच-छह लोग अंदर घुसे और उन्हें पीटना शुरू कर दिया।
डकैतों ने सारी लाइटें बंद कर दीं और केवरसिंह के सिर पर किसी भारी चीज से कई बार मारा जिससे उनका सिर फट गया। वे लगातार चिल्लाते रहे और बेहोश हो गए। अगले दिन जब होश आया तो वे शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में दाखिल थे। उनके 17 साल के बेटे ने बताया कि उनकी चिल्लाने की आवाज सुनकर लड़का और ऑफिस के दूसरे लोगों ने दरवाजों के शीशे तोड़कर अंदर आकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया।
सरकारी सम्मान
सरकार ने केवरसिंह को जान पर खेलकर डाक की चीजें बचाने के लिए 'बेस्ट पोस्टमैन' का इनाम दिया। यह इनाम 2004 में मिला। इस इनाम में 500 रुपए और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। वे और उनका परिवार बहुत खुश हुए। आज भी वे गर्व से कहते हैं - "मैं बेस्ट पोस्ट मैन हूं।"
भविष्य की चिंताएं
अब डाकिए की नौकरी में लगना भी बहुत मुश्किल हो चुका है। जितने डाकिए रिटायर हो चुके हैं उनकी जगह नए डाकियों को नहीं रखा जा रहा है। इससे पुराने डाकियों पर काम का बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
नए शब्दों के अर्थ:
पैकर - डाकघर में डाक को छांटने और व्यवस्थित करने वाला कर्मचारी
ग्रामीण डाक सेवक - गांवों में डाक पहुंचाने वाला डाकिया
मनीऑर्डर - पैसे भेजने का एक सुरक्षित तरीका
रजिस्ट्री पत्र - पंजीकृत चिट्ठी जिसकी रसीद मिलती है
स्नोबाइट - बर्फ के कारण शरीर के अंगों का जमना
गैंग्रीन - शरीर के किसी हिस्से का सड़ना
तबादला - एक जगह से दूसरी जगह काम पर भेजना
प्रशस्ति पत्र - सम्मान का प्रमाण पत्र
रिटायर - सेवानिवृत्त होना