Chapter 12: गुरु और चेला
Chapter Summary
गुरु और चेला - Chapter Summary
## कविता का परिचय
यह कविता सोहन लाल द्विवेदी जी द्वारा लिखी गई है। इसमें अंधेर नगरी के मूर्ख राजा और उसकी अन्यायपूर्ण न्याय व्यवस्था का वर्णन है। कविता के माध्यम से लेखक ने दिखाया है कि कैसे अज्ञानता और मूर्खता के कारण पूरा समाज भ्रष्ट हो जाता है।
## मुख्य कथा
### गुरु और चेले की यात्रा
कविता की शुरुआत में एक गुरु और उसके चेले की यात्रा का वर्णन है। वे घूमते-फिरते एक अजीब नगरी में पहुंचते हैं। इस नगरी में सब कुछ बहुत चमकदार और सुंदर दिखाई देता है।
### अंधेर नगरी की विशेषताएं
इस नगरी की सबसे अजीब बात यह है कि यहाँ हर चीज़ का दाम एक ही है - एक टके में सब कुछ मिलता है। चाहे वह सब्जी हो या मिठाई, सब कुछ एक ही दाम में मिलता है।
एक ग्वालिन से पूछने पर पता चलता है कि:
- यह अंधेर नगरी है
- यहाँ का राजा अनबूझ (मूर्ख) है
- टके सेर भाजी, टके सेर खाजा (सब कुछ एक ही दाम में)
### गुरु की समझदारी
गुरु जी तुरंत समझ जाते हैं कि यह जगह खतरनाक है। वे कहते हैं:
- "जान देना नहीं है, मुसीबत मुझे मोल लेना नहीं है"
- "न जाने की अंधेर हो कौन छन में"
- "यहाँ ठीक रहना समझता न मन में"
गुरु जी अपने चेले को साथ लेकर वहाँ से चले जाना चाहते हैं।
### चेले की लालच
लेकिन चेला लालच में पड़ जाता है। वह सोचता है कि यहाँ सब कुछ सस्ता है, तो वह मोटा-अकेला हो जाएगा। गुरु के मना करने पर भी वह वहीं रुक जाता है।
### हाट-बाजार का दृश्य
चेला हाट-बाजार देखने जाता है और वहाँ अजीब दृश्य देखता है:
- टके सेर हल्दी, टके सेर जीरा
- टके सेर ककड़ी, टके सेर खीरा
- टके सेर रबड़ी मलाई भी मिलती है
वह रोज़ मलाई उड़ाता है और खुश रहता है।
## मुख्य घटना - दीवार का गिरना
### दीवार गिरने की घटना
एक दिन बारिश और आंधी के कारण राज्य की एक भारी दीवार गिर जाती है। राजा तुरंत घटनास्थल पर पहुंचता है और सत्री (राजमिस्त्री) को बुलाकर पूछता है कि दीवार क्यों गिरी।
### सत्री का जवाब
सत्री कहता है:
- "महाराज साहब, न इसमें खता मेरी, न मेरा करतब"
- "यह दीवार कमजोर पहले बनी थी"
- "इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी"
### कारीगर को दोष
राजा सत्री की बात मानकर कारीगर को बुलाता है। कारीगर भी अपनी सफाई देता है और कहता है कि यह भिश्ती की गलती है क्योंकि उसने गारा गीला किया था।
### भिश्ती की सफाई
भिश्ती कहता है कि यह गलती उसकी नहीं, बल्कि मशकवाले की है जिसने ज्यादा पानी वाली मशक बनाई थी।
### मशकवाले का तर्क
मशकवाले का कहना है कि यह मंत्री की गलती है क्योंकि उन्होंने बड़े जानवर का चमड़ा दिलाया था।
## न्याय की पराकाष्ठा
### मंत्री की पतली गर्दन
जब मंत्री को फाँसी देने का समय आता है, तो पता चलता है कि मंत्री की गर्दन इतनी पतली है कि फाँसी का फंदा उसमें नहीं आता।
### मोटी गर्दन की तलाश
राजा कहता है कि जिसकी मोटी गर्दन हो, उसे फाँसी दो। सत्री मोटी गर्दन वाले व्यक्ति की तलाश में जाता है और उसे चेला मिलता है जो हलुवा खा रहा है।
### चेले की गिरफ्तारी
चेले को न्यायालय में बुलाया जाता है। वह खुशी-खुशी जाता है, समझता है कि उसे कोई न्यौता मिला है।
### चेले की होशियारी
जब चेले को पता चलता है कि उसे फाँसी दी जाने वाली है, तो वह होशियारी दिखाता है और कहता है कि पहले उसे अपने गुरु के दर्शन करने दो।
## गुरु का आगमन और समाधान
### गुरु का आना
गुरु जी को बुलाया जाता है। वे चेले के पास आते हैं और उसके कान में कुछ मंत्र फूंकते हैं।
### गुरु-चेला की लड़ाई
अचानक गुरु और चेला झगड़ने लगते हैं। दोनों फाँसी पर चढ़ने के लिए आग्रह करते हैं:
- गुरु कहते हैं: "फाँसी पर मैं चढ़ूंगा"
- चेला कहते हैं: "फाँसी पर मैं मरूंगा"
### राजा की जिज्ञासा
राजा हैरान होकर पूछता है कि बात क्या है। गुरु जी बताते हैं कि यह मुर्त (मूर्ति/स्थान) बहुत पवित्र है।
### गुरु की चालाकी
गुरु जी राजा से कहते हैं:
- "यह मोटी है गर्दन, इसे तुम बढ़ाओ"
- "चढ़ेगा जो फाँसी महूरत है ऐसी"
- "वह राजा नहीं, चक्रवर्ती बनेगा"
- "यह संसार का छत्र उस पर तनेगा"
### राजा का मोह
राजा लालच में आकर कहता है:
- "फाँसी पर मैं चढ़ूंगा"
- "इसी दम फाँसी पर मैं ही टंगूंगा"
## कविता का अंत
### मूर्ख राजा की मृत्यु
राजा फाँसी पर चढ़ जाता है और मर जाता है। उसकी मृत्यु पर खूब बाजे बजते हैं।
### प्रजा की खुशी
प्रजा खुश हो जाती है जब मूर्ख राजा मर जाता है। घर-घर में बधाई के बाजे बजते हैं।
### संदेश
कविता का संदेश यह है कि अंधेर नगरी में अनबूझ राजा का शासन था, जहाँ न्याय व्यवस्था पूरी तरह भ्रष्ट थी।
## मुख्य पात्र
1. **गुरु** - बुद्धिमान, दूरदर्शी, अनुभवी
2. **चेला** - लालची, लेकिन अंत में चतुर
3. **राजा** - मूर्ख, अनबूझ, लालची
4. **ग्वालिन** - सच्चाई बताने वाली
5. **सत्री, कारीगर, भिश्ती, मशकवाला, मंत्री** - सभी अपनी-अपनी सफाई देने वाले
## मुख्य विषय
1. **न्याय व्यवस्था की भ्रष्टता**
2. **मूर्ख शासन के परिणाम**
3. **बुद्धिमत्ता की जीत**
4. **लालच के नुकसान**
5. **सामाजिक व्यवस्था की आलोचना**
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## नए शब्दों के अर्थ
**अंधेर नगरी** - जहाँ अंधेरा (अज्ञान) हो, भ्रष्ट व्यवस्था वाली जगह
**अनबूझ** - जो न समझे, मूर्ख
**टका** - पुराने जमाने का एक सिक्का
**ग्वालिन** - दूध बेचने वाली महिला
**सत्री** - राजमिस्त्री, दीवार बनाने वाला कारीगर
**भिश्ती** - पानी भरने वाला, पानी पिलाने वाला
**मशक** - चमड़े का थैला जिसमें पानी भरते हैं
**मशकवाला** - मशक बनाने वाला
**महूरत** - शुभ समय
**चक्रवर्ती** - बहुत बड़ा राजा, सम्राट
**कारीगर** - कुशल मजदूर, दस्तकार
**कमजोर** - weak, कमजोर
**मुसीबत** - परेशानी, मुश्किल
**मोल** - दाम, कीमत
**दर्शन** - मिलना, देखना
**मंत्र** - जादुई शब्द, श्लोक
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# बिना जड़ का पेड़
## कहानी का परिचय
यह कहानी वीरेंद्र झा जी द्वारा लिखी गई है। इसमें प्रसिद्ध विद्वान गोनू झा की बुद्धिमत्ता और चतुराई का वर्णन है। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे गोनू झा एक धोखेबाज व्यापारी को उसी के जाल में फंसाते हैं।
## मुख्य कथा
### व्यापारी का दरबार में आना
राजा के दरबार में एक व्यापारी संदूक लेकर आता है। वह बहुत गर्व से कहता है:
- "महाराज, मैं व्यापारी हूँ और बिना बीज एवं पानी के पेड़ उगाता हूँ"
- "आपके लिए मैं एक अद्भुत उपहार लाया हूँ"
- "आपके दरबार में एक-से-एक ज्ञानी-ध्यानी हैं, इसलिए पहले मुझे कोई यह बताए कि इस संदूक में क्या है?"
### दरबारियों की स्थिति
व्यापारी की चुनौती सुनकर:
- सभासद, पंडित, पुरोहित और ज्योतिषी एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं
- कोई भी व्यक्ति जवाब देने की हिम्मत नहीं करता
- सभी लोग सिर झुका लेते हैं
### गोनू झा की चुनौती स्वीकार करना
सभा में गोनू झा भी उपस्थित हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे चुनौती स्वीकार नहीं करेंगे तो दरबार की हंसी होगी।
गोनू झा विश्वासपूर्वक कहते हैं:
- "मैं बता सकता हूँ कि संदूक में क्या है"
- "लेकिन इसके लिए मुझे रातभर का समय चाहिए"
- "व्यापारी को संदूक के साथ मेरे यहाँ ठहरना होगा"
### रात की रणनीति
**व्यापारी की शर्तें:**
- संदूक बदला न जाए, इसकी निगरानी के लिए दोनों रातभर जागेंगे
- व्यापारी चाहे तो पहरेदार भी रख सकते हैं
**रातभर की बातचीत:**
- दोनों संदूक की रखवाली करते रहते हैं
- रात काटने के लिए किस्से-कहानियां चलती हैं
- बातचीत के दौरान व्यापारी कहता है: "मैं बिना बीज-पानी के पेड़ उगा सकता हूँ"
### गोनू झा की चतुराई
गोनू झा पूछते हैं:
- "भाई, कुछ दिन पूर्व मुझे एक व्यापारी मिला था, उसने भी यही कहा था कि बिना बीज-पानी के पेड़ उगाता हूँ"
- "पेड़ों में भांति-भांति के फूल खिलते हैं, वह भी रात में"
- "क्या आप भी रात में पेड़ उगाकर भांति-भांति के फूल खिला सकते हैं?"
### व्यापारी का जाल में फंसना
व्यापारी अहंकार से कहता है:
- "क्यों नहीं! मेरे पेड़ रात में ही अच्छे लगते हैं"
- "उनके रंग-बिरंगे फूल देखते ही बनते हैं"
यह सुनते ही गोनू झा की आँखों में चमक आ जाती है और वे निश्चिंत हो जाते हैं।
## दरबार में प्रदर्शन
### अगले दिन का दृश्य
दूसरे दिन दोनों दरबार में उपस्थित होते हैं।
### गोनू झा का समाधान
गोनू झा जेब से कुछ आतिशबाजी निकालकर छोड़ते हैं। रंग-बिरंगी रोशनी और तेज आवाज के साथ आतिशबाजी फूटती है।
### सभासदों की प्रतिक्रिया
सभासद झुंझला जाते हैं। महाराज की भी आँखें लाल-पीली हो जाती हैं और वे कहते हैं:
- "गोनू झा, यह क्या बेवक्त की शहनाई बजा दी!"
- "सभा का सामान्य शिष्टाचार भी भूल गए?"
### गोनू झा की सफाई
गोनू झा वातावरण को सहज करते हुए कहते हैं:
- "महाराज, सर्वप्रथम धृष्टता के लिए क्षमा चाहता हूँ"
- "लेकिन यह मेरी मजबूरी थी"
- "इसी में व्यापारी भाई के रहस्यमय प्रश्न का उत्तर छुपा है"
- "इसी में बिना जड़ के भांति-भांति के रंगों में फूल खिलते हैं"
### व्यापारी का हैरान होना
व्यापारी अवाक रह जाता है। वह स्वीकार करते हुए कहता है:
- "महाराज, इन्होंने मेरे गुढ़ प्रश्न का उत्तर दे दिया"
### सच्चाई का खुलासा
**व्यापारी का सवाल:**
"आपने कैसे जाना कि इसमें आतिशबाजी ही है?"
**गोनू झा का जवाब:**
- "व्यापारी, जब आपने यह कहा कि बिना बीज-पानी के पेड़ उगते हैं और उनमें भांति-भांति के फूल खिलते हैं, तब तक मुझे संदेह रहा"
- "परंतु मेरे पूछने पर यह कहा कि रात ही में आपकी यह फसल अच्छी लगती है, तब जरा भी संशय नहीं रहा"
- "इसमें आतिशबाजी छोड़े कुछ अन्य सामान नहीं होगा"
## कहानी का अंत
### व्यापारी की माफी
व्यापारी मायूस हो जाता है।
### राजा का फैसला
राजा कहते हैं:
- "व्यापारी, आपको दुखी होने की जरूरत नहीं है"
- "आप यहाँ रहने के लिए स्वतंत्र हैं"
- "अपना कमाल रात में दिखाकर लोगों का मनोरंजन कीजिएगा"
- "अगर प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा तो पुरस्कार भी पाइएगा"
- "लेकिन अभी पुरस्कार के हकदार गोनू झा ही हैं"
### संदेश
**आतिशबाजी झूंझला गई! महाराज की भी आँखें लाल-पीली हो गई और कहा, 'गोनू झा, यह क्या बेवक्त की शहनाई बजा दी!'**
गोनू झा ने वातावरण को सहज करते हुए कहा:
- "महाराज, सर्वप्रथम धृष्टता के लिए क्षमा चाहता हूँ, लेकिन यह मेरी मजबूरी थी"
- "इसी में व्यापारी भाई के रहस्यमय प्रश्न का उत्तर छुपा है"
## मुख्य पात्र
1. **गोनू झा** - बुद्धिमान, चतुर, समझदार विद्वान
2. **व्यापारी** - धोखेबाज, अहंकारी, लेकिन अंत में सच स्वीकार करने वाला
3. **राजा** - न्यायप्रिय, धैर्यवान
4. **सभासद** - डरपोक, निष्क्रिय
## मुख्य विषय
1. **बुद्धिमत्ता की जीत**
2. **धोखाधड़ी का भंडाफोड़**
3. **सच्चाई की विजय**
4. **चतुराई और समझदारी**
5. **न्याय की स्थापना**
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## नए शब्दों के अर्थ
**संदूक** - Box, बक्सा
**अद्भुत** - Amazing, आश्चर्यजनक
**उपहार** - Gift, तोहफा
**सभासद** - Court members, दरबारी
**पुरोहित** - Priest, पंडित
**ज्योतिषी** - Astrologer, भविष्य बताने वाला
**रहस्यमय** - Mysterious, रहस्य से भरा
**आतिशबाजी** - Fireworks, पटाखे
**धृष्टता** - Impudence, ढिठाई
**शिष्टाचार** - Etiquette, सभ्यता
**मजबूरी** - Compulsion, लाचारी
**मनोरंजन** - Entertainment, मन बहलाना
**प्रशंसनीय** - Praiseworthy, तारीफ के योग्य
**हकदार** - Deserving, योग्य
**मायूस** - Disappointed, निराश
**अवाक** - Speechless, हैरान
गुरु और चेला
कविता का परिचय
यह कविता सोहन लाल द्विवेदी जी द्वारा लिखी गई है। इसमें अंधेर नगरी के मूर्ख राजा और उसकी अन्यायपूर्ण न्याय व्यवस्था का वर्णन है। कविता के माध्यम से लेखक ने दिखाया है कि कैसे अज्ञानता और मूर्खता के कारण पूरा समाज भ्रष्ट हो जाता है।
मुख्य कथा
गुरु और चेले की यात्रा
कविता की शुरुआत में एक गुरु और उसके चेले की यात्रा का वर्णन है। वे घूमते-फिरते एक अजीब नगरी में पहुंचते हैं। इस नगरी में सब कुछ बहुत चमकदार और सुंदर दिखाई देता है।
अंधेर नगरी की विशेषताएं
इस नगरी की सबसे अजीब बात यह है कि यहाँ हर चीज़ का दाम एक ही है - एक टके में सब कुछ मिलता है। चाहे वह सब्जी हो या मिठाई, सब कुछ एक ही दाम में मिलता है।
एक ग्वालिन से पूछने पर पता चलता है कि:
- यह अंधेर नगरी है
- यहाँ का राजा अनबूझ (मूर्ख) है
- टके सेर भाजी, टके सेर खाजा (सब कुछ एक ही दाम में)
गुरु की समझदारी
गुरु जी तुरंत समझ जाते हैं कि यह जगह खतरनाक है। वे कहते हैं:
- "जान देना नहीं है, मुसीबत मुझे मोल लेना नहीं है"
- "न जाने की अंधेर हो कौन छन में"
- "यहाँ ठीक रहना समझता न मन में"
गुरु जी अपने चेले को साथ लेकर वहाँ से चले जाना चाहते हैं।
चेले की लालच
लेकिन चेला लालच में पड़ जाता है। वह सोचता है कि यहाँ सब कुछ सस्ता है, तो वह मोटा-अकेला हो जाएगा। गुरु के मना करने पर भी वह वहीं रुक जाता है।
हाट-बाजार का दृश्य
चेला हाट-बाजार देखने जाता है और वहाँ अजीब दृश्य देखता है:
- टके सेर हल्दी, टके सेर जीरा
- टके सेर ककड़ी, टके सेर खीरा
- टके सेर रबड़ी मलाई भी मिलती है
वह रोज़ मलाई उड़ाता है और खुश रहता है।
मुख्य घटना - दीवार का गिरना
दीवार गिरने की घटना
एक दिन बारिश और आंधी के कारण राज्य की एक भारी दीवार गिर जाती है। राजा तुरंत घटनास्थल पर पहुंचता है और सत्री (राजमिस्त्री) को बुलाकर पूछता है कि दीवार क्यों गिरी।
सत्री का जवाब
सत्री कहता है:
- "महाराज साहब, न इसमें खता मेरी, न मेरा करतब"
- "यह दीवार कमजोर पहले बनी थी"
- "इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी"
कारीगर को दोष
राजा सत्री की बात मानकर कारीगर को बुलाता है। कारीगर भी अपनी सफाई देता है और कहता है कि यह भिश्ती की गलती है क्योंकि उसने गारा गीला किया था।
भिश्ती की सफाई
भिश्ती कहता है कि यह गलती उसकी नहीं, बल्कि मशकवाले की है जिसने ज्यादा पानी वाली मशक बनाई थी।
मशकवाले का तर्क
मशकवाले का कहना है कि यह मंत्री की गलती है क्योंकि उन्होंने बड़े जानवर का चमड़ा दिलाया था।
न्याय की पराकाष्ठा
मंत्री की पतली गर्दन
जब मंत्री को फाँसी देने का समय आता है, तो पता चलता है कि मंत्री की गर्दन इतनी पतली है कि फाँसी का फंदा उसमें नहीं आता।
मोटी गर्दन की तलाश
राजा कहता है कि जिसकी मोटी गर्दन हो, उसे फाँसी दो। सत्री मोटी गर्दन वाले व्यक्ति की तलाश में जाता है और उसे चेला मिलता है जो हलुवा खा रहा है।
चेले की गिरफ्तारी
चेले को न्यायालय में बुलाया जाता है। वह खुशी-खुशी जाता है, समझता है कि उसे कोई न्यौता मिला है।
चेले की होशियारी
जब चेले को पता चलता है कि उसे फाँसी दी जाने वाली है, तो वह होशियारी दिखाता है और कहता है कि पहले उसे अपने गुरु के दर्शन करने दो।
गुरु का आगमन और समाधान
गुरु का आना
गुरु जी को बुलाया जाता है। वे चेले के पास आते हैं और उसके कान में कुछ मंत्र फूंकते हैं।
गुरु-चेला की लड़ाई
अचानक गुरु और चेला झगड़ने लगते हैं। दोनों फाँसी पर चढ़ने के लिए आग्रह करते हैं:
- गुरु कहते हैं: "फाँसी पर मैं चढ़ूंगा"
- चेला कहते हैं: "फाँसी पर मैं मरूंगा"
राजा की जिज्ञासा
राजा हैरान होकर पूछता है कि बात क्या है। गुरु जी बताते हैं कि यह मुर्त (मूर्ति/स्थान) बहुत पवित्र है।
गुरु की चालाकी
गुरु जी राजा से कहते हैं:
- "यह मोटी है गर्दन, इसे तुम बढ़ाओ"
- "चढ़ेगा जो फाँसी महूरत है ऐसी"
- "वह राजा नहीं, चक्रवर्ती बनेगा"
- "यह संसार का छत्र उस पर तनेगा"
राजा का मोह
राजा लालच में आकर कहता है:
- "फाँसी पर मैं चढ़ूंगा"
- "इसी दम फाँसी पर मैं ही टंगूंगा"
कविता का अंत
मूर्ख राजा की मृत्यु
राजा फाँसी पर चढ़ जाता है और मर जाता है। उसकी मृत्यु पर खूब बाजे बजते हैं।
प्रजा की खुशी
प्रजा खुश हो जाती है जब मूर्ख राजा मर जाता है। घर-घर में बधाई के बाजे बजते हैं।
संदेश
कविता का संदेश यह है कि अंधेर नगरी में अनबूझ राजा का शासन था, जहाँ न्याय व्यवस्था पूरी तरह भ्रष्ट थी।
मुख्य पात्र
- गुरु - बुद्धिमान, दूरदर्शी, अनुभवी
- चेला - लालची, लेकिन अंत में चतुर
- राजा - मूर्ख, अनबूझ, लालची
- ग्वालिन - सच्चाई बताने वाली
- सत्री, कारीगर, भिश्ती, मशकवाला, मंत्री - सभी अपनी-अपनी सफाई देने वाले
मुख्य विषय
- न्याय व्यवस्था की भ्रष्टता
- मूर्ख शासन के परिणाम
- बुद्धिमत्ता की जीत
- लालच के नुकसान
- सामाजिक व्यवस्था की आलोचना
नए शब्दों के अर्थ
अंधेर नगरी - जहाँ अंधेरा (अज्ञान) हो, भ्रष्ट व्यवस्था वाली जगह
अनबूझ - जो न समझे, मूर्ख
टका - पुराने जमाने का एक सिक्का
ग्वालिन - दूध बेचने वाली महिला
सत्री - राजमिस्त्री, दीवार बनाने वाला कारीगर
भिश्ती - पानी भरने वाला, पानी पिलाने वाला
मशक - चमड़े का थैला जिसमें पानी भरते हैं
मशकवाला - मशक बनाने वाला
महूरत - शुभ समय
चक्रवर्ती - बहुत बड़ा राजा, सम्राट
कारीगर - कुशल मजदूर, दस्तकार
कमजोर - weak, कमजोर
मुसीबत - परेशानी, मुश्किल
मोल - दाम, कीमत
दर्शन - मिलना, देखना
मंत्र - जादुई शब्द, श्लोक
बिना जड़ का पेड़
कहानी का परिचय
यह कहानी वीरेंद्र झा जी द्वारा लिखी गई है। इसमें प्रसिद्ध विद्वान गोनू झा की बुद्धिमत्ता और चतुराई का वर्णन है। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे गोनू झा एक धोखेबाज व्यापारी को उसी के जाल में फंसाते हैं।
मुख्य कथा
व्यापारी का दरबार में आना
राजा के दरबार में एक व्यापारी संदूक लेकर आता है। वह बहुत गर्व से कहता है:
- "महाराज, मैं व्यापारी हूँ और बिना बीज एवं पानी के पेड़ उगाता हूँ"
- "आपके लिए मैं एक अद्भुत उपहार लाया हूँ"
- "आपके दरबार में एक-से-एक ज्ञानी-ध्यानी हैं, इसलिए पहले मुझे कोई यह बताए कि इस संदूक में क्या है?"
दरबारियों की स्थिति
व्यापारी की चुनौती सुनकर:
- सभासद, पंडित, पुरोहित और ज्योतिषी एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं
- कोई भी व्यक्ति जवाब देने की हिम्मत नहीं करता
- सभी लोग सिर झुका लेते हैं
गोनू झा की चुनौती स्वीकार करना
सभा में गोनू झा भी उपस्थित हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे चुनौती स्वीकार नहीं करेंगे तो दरबार की हंसी होगी।
गोनू झा विश्वासपूर्वक कहते हैं:
- "मैं बता सकता हूँ कि संदूक में क्या है"
- "लेकिन इसके लिए मुझे रातभर का समय चाहिए"
- "व्यापारी को संदूक के साथ मेरे यहाँ ठहरना होगा"
रात की रणनीति
व्यापारी की शर्तें:
- संदूक बदला न जाए, इसकी निगरानी के लिए दोनों रातभर जागेंगे
- व्यापारी चाहे तो पहरेदार भी रख सकते हैं
रातभर की बातचीत:
- दोनों संदूक की रखवाली करते रहते हैं
- रात काटने के लिए किस्से-कहानियां चलती हैं
- बातचीत के दौरान व्यापारी कहता है: "मैं बिना बीज-पानी के पेड़ उगा सकता हूँ"
गोनू झा की चतुराई
गोनू झा पूछते हैं:
- "भाई, कुछ दिन पूर्व मुझे एक व्यापारी मिला था, उसने भी यही कहा था कि बिना बीज-पानी के पेड़ उगाता हूँ"
- "पेड़ों में भांति-भांति के फूल खिलते हैं, वह भी रात में"
- "क्या आप भी रात में पेड़ उगाकर भांति-भांति के फूल खिला सकते हैं?"
व्यापारी का जाल में फंसना
व्यापारी अहंकार से कहता है:
- "क्यों नहीं! मेरे पेड़ रात में ही अच्छे लगते हैं"
- "उनके रंग-बिरंगे फूल देखते ही बनते हैं"
यह सुनते ही गोनू झा की आँखों में चमक आ जाती है और वे निश्चिंत हो जाते हैं।
दरबार में प्रदर्शन
अगले दिन का दृश्य
दूसरे दिन दोनों दरबार में उपस्थित होते हैं।
गोनू झा का समाधान
गोनू झा जेब से कुछ आतिशबाजी निकालकर छोड़ते हैं। रंग-बिरंगी रोशनी और तेज आवाज के साथ आतिशबाजी फूटती है।
सभासदों की प्रतिक्रिया
सभासद झुंझला जाते हैं। महाराज की भी आँखें लाल-पीली हो जाती हैं और वे कहते हैं:
- "गोनू झा, यह क्या बेवक्त की शहनाई बजा दी!"
- "सभा का सामान्य शिष्टाचार भी भूल गए?"
गोनू झा की सफाई
गोनू झा वातावरण को सहज करते हुए कहते हैं:
- "महाराज, सर्वप्रथम धृष्टता के लिए क्षमा चाहता हूँ"
- "लेकिन यह मेरी मजबूरी थी"
- "इसी में व्यापारी भाई के रहस्यमय प्रश्न का उत्तर छुपा है"
- "इसी में बिना जड़ के भांति-भांति के रंगों में फूल खिलते हैं"
व्यापारी का हैरान होना
व्यापारी अवाक रह जाता है। वह स्वीकार करते हुए कहता है:
- "महाराज, इन्होंने मेरे गुढ़ प्रश्न का उत्तर दे दिया"
सच्चाई का खुलासा
व्यापारी का सवाल: "आपने कैसे जाना कि इसमें आतिशबाजी ही है?"
गोनू झा का जवाब:
- "व्यापारी, जब आपने यह कहा कि बिना बीज-पानी के पेड़ उगते हैं और उनमें भांति-भांति के फूल खिलते हैं, तब तक मुझे संदेह रहा"
- "परंतु मेरे पूछने पर यह कहा कि रात ही में आपकी यह फसल अच्छी लगती है, तब जरा भी संशय नहीं रहा"
- "इसमें आतिशबाजी छोड़े कुछ अन्य सामान नहीं होगा"
कहानी का अंत
व्यापारी की माफी
व्यापारी मायूस हो जाता है।
राजा का फैसला
राजा कहते हैं:
- "व्यापारी, आपको दुखी होने की जरूरत नहीं है"
- "आप यहाँ रहने के लिए स्वतंत्र हैं"
- "अपना कमाल रात में दिखाकर लोगों का मनोरंजन कीजिएगा"
- "अगर प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा तो पुरस्कार भी पाइएगा"
- "लेकिन अभी पुरस्कार के हकदार गोनू झा ही हैं"
संदेश
आतिशबाजी झूंझला गई! महाराज की भी आँखें लाल-पीली हो गई और कहा, 'गोनू झा, यह क्या बेवक्त की शहनाई बजा दी!'
गोनू झा ने वातावरण को सहज करते हुए कहा:
- "महाराज, सर्वप्रथम धृष्टता के लिए क्षमा चाहता हूँ, लेकिन यह मेरी मजबूरी थी"
- "इसी में व्यापारी भाई के रहस्यमय प्रश्न का उत्तर छुपा है"
मुख्य पात्र
- गोनू झा - बुद्धिमान, चतुर, समझदार विद्वान
- व्यापारी - धोखेबाज, अहंकारी, लेकिन अंत में सच स्वीकार करने वाला
- राजा - न्यायप्रिय, धैर्यवान
- सभासद - डरपोक, निष्क्रिय
मुख्य विषय
- बुद्धिमत्ता की जीत
- धोखाधड़ी का भंडाफोड़
- सच्चाई की विजय
- चतुराई और समझदारी
- न्याय की स्थापना
नए शब्दों के अर्थ
संदूक - Box, बक्सा
अद्भुत - Amazing, आश्चर्यजनक
उपहार - Gift, तोहफा
सभासद - Court members, दरबारी
पुरोहित - Priest, पंडित
ज्योतिषी - Astrologer, भविष्य बताने वाला
रहस्यमय - Mysterious, रहस्य से भरा
आतिशबाजी - Fireworks, पटाखे
धृष्टता - Impudence, ढिठाई
शिष्टाचार - Etiquette, सभ्यता
मजबूरी - Compulsion, लाचारी
मनोरंजन - Entertainment, मन बहलाना
प्रशंसनीय - Praiseworthy, तारीफ के योग्य
हकदार - Deserving, योग्य
मायूस - Disappointed, निराश
अवाक - Speechless, हैरान