Chapter 15: बिशन की दिलेरी
Chapter Summary
बिशन की दिलेरी - Chapter Summary
## कहानी की शुरुआत
सुबह का समय था। पहाड़ों के पीछे से सूरज झाँक रहा था। दस वर्ष का विशान घर से बाहर निकल आया। वह रोज़ इसी समय, इसी रास्ते से कर्नल दत्ता के फार्म हाउस पर जाता था। कर्नल दत्ता की पत्नी पढ़ाई में उसकी मदद करती थी। फार्म से लगे सेबों के बाग में कीटनाशक दवा का छिड़काव हो रहा था।
## गोली की आवाज़
विशान पगडंडी से अभी सड़क तक आ ही रहा था कि उसे गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर-उधर देखा, कोई भी दिखाई नहीं दिया। वह कुछ ही दूर चला था कि उसे फिर गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। इस बार एक नहीं, दो-तीन गोलियाँ एक साथ ही चली थीं। गोलियों की आवाज़ से पूरी घाटी गूँज गई। पंछी घबरा गए। आसमान में गोल-गोल चक्कर काटने लगे।
## शिकारियों का पता चलना
विशान समझकर पेड़ों की आड़ में छिपकर खड़ा हो गया। उसे समझ में आ गया कि शिकारी ही तीतरों पर गोलियाँ चला रहे थे। जब फसल पक जाती है तो गेहूँ के खेतों में दाना चुगने ढेरों तीतर आ जाते हैं। शिकारी इस बात को जानते थे। इसलिए वे सुबह-सुबह ही तीतर मारने चले आते थे।
## घायल तीतर को देखना
विशान पगडंडी से अभी सड़क तक आ ही रहा था कि उसे गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर-उधर देखा, कोई भी दिखाई नहीं दिया। अचानक उसके पाँव के पास सरसराहट-सी हुई। उसने देखा एक घायल तीतर गेहूँ की बालियों के बीच फंसा छटपटा रहा था।
## तीतर को बचाना
विशान वहीं घुटनों के बल बैठ गया। उसने घायल तीतर को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन घबराया हुआ तीतर छिटककर खेत के और अंदर चला गया। विशान जानता था कि शिकारी इस तीतर को ढूँढ़ नहीं पाएंगे और घायल तीतर यहीं तड़प-तड़पकर मर जाएगा। उसने स्वेटर उतारा और मौका देखकर तीतर पर डाल दिया।
तीतर स्वेटर में फंस गया तो विशान ने उसे पकड़ लिया। विशान ने उसे अपने सीने से चिपका लिया और खेत में से निकलकर पहाड़ी की ओर भागने लगा। वह इतना तेज़ चल रहा था मानो उसके पंख लग गए हों।
## शिकारी का पीछा
विशान कुछ ही दूर गया कि पीछे से भारी-सी आवाज़ आई, "लड़के, रुक जा, नहीं तो मैं गोली मार दूंगा।" लेकिन विशान नहीं रुका। वह चुपचाप चलता रहा। "रुकता है या नहीं?" उस आदमी ने दुबारा चिल्लाकर कहा। तब तक विशान कंटीले तारों के पास आ गया था।
## कंटीले तारों से गुजरना
विशान के लिए आगे निकल भागने का रास्ता नहीं था। अगर वह सड़क से जाता तो शिकारी को साफ दिखाई दे जाता। इसलिए उसने खेतों के छोटे रास्ते से जाना तय किया। खेतों से आगे के रास्ते में काँटेदार झाड़ियाँ थीं। विशान उसी रास्ते पर घुटनों के बल चलने लगा।
बहुत संभलकर चलने पर भी उसके हाथ-पाँव पर काँटों की बहुत-सी खरोंचें उभर आईं। खरोंचों से खून भी निकलने लगा। उसकी कमीज़ की एक आस्तीन भी फट गई। वह जानता था कि कमीज़ फटने पर उसे माँ से डाँट खानी पड़ेगी। पर विशान को इस बात का संतोष था कि वह अब तक तीतर की जान बचाने में कामयाब रहा।
## सुरक्षित स्थान पहुंचना
विशान थककर वहीं एक किनारे बैठ गया। अभी वह बैठा ही था कि उसे पाँवों की आहट सुनाई दी। आहट सुनते ही वह उठकर दौड़ पड़ा। दौड़ते-दौड़ते वह आधी पहाड़ी पार कर चुका था। उसके कपड़े पसीने से तर-ब-तर हो गए, फिर भी वह रुका नहीं और किसी तरह कर्नल दत्ता के फार्म हाउस के पिछवाड़े पहुंच ही गया।
## कर्नल दत्ता के फार्म हाउस में
फार्म हाउस में खामोशी थी। बस, रसोई घर से प्रेशर कुकर की सीटी की आवाज़ आ रही थी। मुर्गियाँ अभी अपने दड़बे में थीं और गुलाब चंद सामने का बरामदा साफ कर रहा था। अचानक कर्नल साहब का अल्सेशियन कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा।
## शिकारियों का आना
कर्नल ने कुत्ते को डाँटा, "चुप रहो।" पर वह न माना। पिछले दोनों पाँवों पर खड़े हो वह उछल-उछलकर भौंकने लगा। वे दोनों शिकारी करीब आ गए तो कर्नल ने रौबदार आवाज़ में पूछा, "कौन हो तुम? यहाँ किसलिए आए हो?"
## कर्नल दत्ता और शिकारियों की बातचीत
"साहब, हम शिकारी हैं! हर साल यहाँ शिकार के लिए आते हैं।" "अच्छा--- तो तुम्हीं लोगों की गोलियों की आवाज़ें गूँज रही थीं सुबह से!" "जी हाँ, हमारे पास लाइसेंस वाली बंदूकें हैं। सरपंच माधो सिंह भी हमें जानता है।"
कर्नल दत्ता ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और गुस्से से कहा, "कैसे हो तुम लोग, हर साल आकर इतने तीतर मार डालते हो! कुछ को खा लेते हो, और बाकी को घायल करके यहाँ तड़प-तड़पकर मरने के लिए छोड़ जाते हो।"
## तीतर को दिखाना
तभी विशान छप्पर से शेड पर होता हुआ नीचे कूद पड़ा। उसने तीतर को उठा लिया और घर में घुसते ही मालकिन को पुकारने लगा, "बहूजी! बहूजी! जल्दी आइए, यह बहुत घायल है, आकर इसे देखिए!"
## इलाज
कर्नल साहब मुस्करा दिए। उन्होंने घायल तीतर को देखा। उसका एक पंख टूट गया था। अब शायद ही वह उड़ सके। "जाओ, दवाइयों का बक्सा लेकर आओ।" विशान दौड़कर बक्सा ले आया। कर्नल दत्ता ने तीतर के पैरों का घाव साफ किया। फिर दवाई लगा दी। पंख को फैलाकर टेप लगा दिया ताकि वह ज्यादा हिले-डुले नहीं।
## देखभाल के निर्देश
फिर उन्होंने विशान से कहा, "विशान, अगर तुम इसे गेंदे के पत्तों का रस दिन में दो-तीन बार पिलाओगे तो यह जल्दी ठीक हो जाएगा।" तब तक बहूजी एक कटोरी में दलिया ले आईं और तीतर को दलिया खिलाते हुए बोलीं, "इसे रोज़ दलिया भी खिलाना विशान, तीतर को दलिया बहुत पसंद होता है।"
## खुशी का माहौल
"तब तो यह विशान के पीछे-पीछे ही घूमता रहेगा," कर्नल ने हँसते हुए कहा। "अच्छा विशान, तुम जानते हो तीतर कैसे बोलता है?" बहूजी ने पूछा। विशान ने अपने हाथों को मुँह पर रखकर तीतर की आवाज़ निकाली, "क्वाक--- क्वाक--- क्वाक---" कर्नल दत्ता ठहाका मारकर हँस पड़े।
बहूजी भी मुँह पर पल्लू रखकर हँसने लगीं। विशान भी हँसता हुआ हिरन की तरह छलांगें लगाता तीतर के साथ वहाँ से अपने घर की ओर भाग चला।
## विशान की माँ की प्रतिक्रिया
विशान की आवाज़ सुनकर कर्नल दत्ता भी अंदर जा पहुंचे और बोले, "अच्छा! तो तीतर चुराने वाला लड़का तू ही था!" "क्या करता बाबूजी, इसे बहुत चोट लगी है! अगर मैं न लाता तो यह मर जाता!" "अब तू इसका क्या करेगा?" "इसे पालूंगा बाबूजी," विशान ने कहा।
माँ ने पूछा, "अब तू इसका क्या करेगा?" "इसे पालूंगा बाबूजी," विशान ने कहा। कर्नल साहब मुस्करा दिए। उन्होंने घायल तीतर को देखा। उसका एक पंख टूट गया था। अब शायद ही वह उड़ सके।
## सरल शब्दों की व्याख्या
**कीटनाशक दवा** - Pesticide, एक रसायन जो पेड़-पौधों को कीड़े-मकोड़ों से बचाने के लिए उपयोग किया जाता है।
**घाटी** - Valley, पहाड़ों के बीच का समतल भाग।
**पगडंडी** - Footpath, संकरा रास्ता जो पैदल चलने के लिए बना होता है।
**सरसराहट** - Rustling sound, हल्की आवाज़ जो चीजों के आपस में रगड़ने से आती है।
**तड़प-तड़पकर** - Writhing in pain, दर्द से बेचैन होकर।
**अल्सेशियन** - Alsatian, एक प्रकार का कुत्ता जो बहुत वफादार और बुद्धिमान होता है।
**रौबदार** - Authoritative, प्रभावशाली और आदेश देने वाला।
**लाइसेंस** - License, सरकारी अनुमति पत्र।
**सरपंच** - Village head, गाँव का मुखिया।
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# रात भर बिलखते-चिंघाड़ते रहे
## हाथियों का जीवन
उड़ीसा राज्य के सिम्प्लीपाल टाइगर रिजर्व में पच्चीस हाथियों का झुंड रहता था। इस झुंड में कुछ धुई भी थीं। जिन हथिनियों के साथ दुधमुंहे बच्चे हों उन्हें धुई कहते हैं। दाँव लगे तो हाथी के छोटे बच्चे को शेर मार लेता है। झुंड के बड़े दांतैल और बड़ी हथिनियाँ बच्चों की रक्षा करती हैं।
## भोजन की तलाश
सर्दियों में जब घास कम हो जाती है तो हाथियों के बड़े झुंड को जंगल के एक खंड में काफी खाना नहीं मिलता। वे छोटी टोलियों में बंटकर अलग-अलग वनखंडों में चरने चले जाते हैं।
## छोटे हाथी का परिचय
1988 के दिसंबर महीने का पहला सप्ताह गुजर रहा था। उन दिनों सिम्प्लीपाल जंगलों के हाथी दो टोलियों में बंट कर बारकमारा-तिनाधिया सड़क के साथ चौड़े में चर रहे थे। एक धुई दो साल का बच्चा था। झुंड में सबसे छोटा यही था। वह माँ का दूध चूंघता था।
## शेर का हमला
इस बच्चे ने जंगल की घास-पत्ती को मुंह लगाना शुरू कर दिया था। झाड़ियों, पेड़ों और पगडंडियों को जानने-पहचानने की स्वाभाविक इच्छा उसमें पैदा हो चुकी थी। एक सुबह वह अपनी टोली से जरा अलग होकर नाले की तरफ जा रहा था।
रात का दौरा लगाने के बाद इस इलाके का शेर वहीं सो रहा था। वह बच्चे पर झपट पड़ा। बच्चा चिंघाड़ा, उसकी चिंघाड़ सुन कर सभी हाथी उसे बचाने दौड़े। बड़े हाथियों के सामने शेर नहीं टिका। उसे छोड़कर नाले में चला गया।
## गंभीर चोट
शेर का हमला इतना जोरदार था कि कुछ ही क्षणों में उसने बच्चे को बुरी तरह जख्मी कर दिया। सबसे बड़ा घाव सिर पर था। समझदार हाथी उसे ऊपरी बारकमारा में रेंजर ऑफिस के सामने ले गए। जंगल के जानवरों की देखभाल और रक्षा करना, रेंज ऑफिसर की जिम्मेदारी होती है।
## हाथियों का प्रेम
उसके दफ्तर के सामने पहुंचकर हाथी मानो अपने को सुरक्षित अनुभव कर रहे थे। कुछ देर बाद आधे हाथी चरने चले गए। बाकी हाथी जख्मी बच्चे की निगरानी में वहीं डटे रहे। उसकी माँ सूंड में घास का पूला उठाकर चंवर डुलाती रही जिससे घाव पर मक्खियां न बैठें।
## माँ का दुःख
उसकी आँखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी। बच्चा इतना जख्मी हो गया था कि दूध नहीं चूंघ सकता था। जंगल में जानवरों के छोटे-मोटे घाव प्रकृति खुद ठीक कर दिया करती है। पर इस बच्चे के घाव जानलेवा थे। अगले दिन उसने दम तोड़ दिया।
## शोक सभा
मरने की खबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफिस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गए। शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आंखें आंसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
## अंतिम संस्कार
इस बच्चे ने जंगल की घास-पत्ती को मुंह लगाना शुरू कर दिया था। झाड़ियों, पेड़ों और पगडंडियों को जानने-पहचानने की स्वाभाविक इच्छा उसमें पैदा हो चुकी थी। एक सुबह वह अपनी टोली से जरा अलग होकर नाले की तरफ जा रहा था। रात का दौरा लगाने के बाद इस इलाके का शेर वहीं सो रहा था। वह बच्चे पर झपट पड़ा।
शेर का हमला इतना जोरदार था कि कुछ ही क्षणों में उसने बच्चे को बुरी तरह जख्मी कर दिया। सबसे बड़ा घाव सिर पर था। समझदार हाथी उसे ऊपरी बारकमारा में रेंजर ऑफिस के सामने ले गए। जंगल के जानवरों की देखभाल और रक्षा करना रेंज ऑफिसर की जिम्मेदारी होती है। उसके दफ्तर के सामने पहुंचकर हाथी मानो अपने को सुरक्षित अनुभव कर रहे थे।
कुछ देर बाद आधे हाथी चरने चले गए। बाकी हाथी जख्मी बच्चे की निगरानी में वहीं डटे रहे। उसकी माँ सूंड में घास का पूला उठाकर चंवर डुलाती रही जिससे घाव पर मक्खियां न बैठें। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी। बच्चा इतना जख्मी हो गया था कि दूध नहीं चूंघ सकता था।
जंगल में जानवरों के छोटे-मोटे घाव प्रकृति खुद ठीक कर दिया करती है। पर इस बच्चे के घाव जानलेवा थे। अगले दिन उसने दम तोड़ दिया। मरने की खबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफिस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गए। शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आंखें आंसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
## हाथियों का अंतिम प्रेम
इस बच्चे ने जंगल की घास-पत्ती को मुंह लगाना शुरू कर दिया था। झाड़ियों, पेड़ों और पगडंडियों को जानने-पहचानने की स्वाभाविक इच्छा उसमें पैदा हो चुकी थी। एक सुबह वह अपनी टोली से जरा अलग होकर नाले की तरफ जा रहा था। रात का दौरा लगाने के बाद इस इलाके का शेर वहीं सो रहा था। वह बच्चे पर झपट पड़ा।
कुछ देर बाद झाड़ी हाथी चरने चले गए। लेकिन बाकी हाथी जख्मी बच्चे की निगरानी में वहीं डटे रहे। उसकी माँ सूंड में घास का पूला उठाकर चंवर डुलाती रही जिससे घाव पर मक्खियां न बैठें। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी। बच्चा इतना जख्मी हो गया था कि दूध नहीं चूंघ सकता था।
जंगल में जानवरों के छोटे-मोटे घाव प्रकृति खुद ठीक कर दिया करती है। पर इस बच्चे के घाव जानलेवा थे। अगले दिन उसने दम तोड़ दिया। मरने की खबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफिस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गए। शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आंखें आंसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
मरने की खबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफिस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गए। शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आंखें आंसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
## सरल शब्दों की व्याख्या
**कीटनाशक दवा** - Pesticide, एक रसायन जो पेड़-पौधों को कीड़े-मकोड़ों से बचाने के लिए उपयोग किया जाता है।
**घाटी** - Valley, पहाड़ों के बीच का समतल भाग।
**पगडंडी** - Footpath, संकरा रास्ता जो पैदल चलने के लिए बना होता है।
**सरसराहट** - Rustling sound, हल्की आवाज़ जो चीजों के आपस में रगड़ने से आती है।
**तड़प-तड़पकर** - Writhing in pain, दर्द से बेचैन होकर।
**अल्सेशियन** - Alsatian, एक प्रकार का कुत्ता जो बहुत वफादार और बुद्धिमान होता है।
**रौबदार** - Authoritative, प्रभावशाली और आदेश देने वाला।
**लाइसेंस** - License, सरकारी अनुमति पत्र।
**सरपंच** - Village head, गाँव का मुखिया।
**धुई** - Mother elephant with young calf, छोटे बच्चे वाली हथिनी।
**दांतैल** - Tusker, दांत वाला नर हाथी।
**चिंघाड़ना** - Trumpeting, हाथी की विशेष आवाज़।
**चंवर** - Fan, पंखा झलने की क्रिया।
**जानलेवा** - Life-threatening, जिससे जान का खतरा हो।
**शोक सभा** - Mourning gathering, दुख मनाने के लिए इकट्ठा होना।
विशान की दिलेरी
कहानी की शुरुआत
सुबह का समय था। पहाड़ों के पीछे से सूरज झाँक रहा था। दस वर्ष का विशान घर से बाहर निकल आया। वह रोज़ इसी समय, इसी रास्ते से कर्नल दत्ता के फार्म हाउस पर जाता था। कर्नल दत्ता की पत्नी पढ़ाई में उसकी मदद करती थी। फार्म से लगे सेबों के बाग में कीटनाशक दवा का छिड़काव हो रहा था।
गोली की आवाज़
विशान पगडंडी से अभी सड़क तक आ ही रहा था कि उसे गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर-उधर देखा, कोई भी दिखाई नहीं दिया। वह कुछ ही दूर चला था कि उसे फिर गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। इस बार एक नहीं, दो-तीन गोलियाँ एक साथ ही चली थीं। गोलियों की आवाज़ से पूरी घाटी गूँज गई। पंछी घबरा गए। आसमान में गोल-गोल चक्कर काटने लगे।
शिकारियों का पता चलना
विशान समझकर पेड़ों की आड़ में छिपकर खड़ा हो गया। उसे समझ में आ गया कि शिकारी ही तीतरों पर गोलियाँ चला रहे थे। जब फसल पक जाती है तो गेहूँ के खेतों में दाना चुगने ढेरों तीतर आ जाते हैं। शिकारी इस बात को जानते थे। इसलिए वे सुबह-सुबह ही तीतर मारने चले आते थे।
घायल तीतर को देखना
विशान पगडंडी से अभी सड़क तक आ ही रहा था कि उसे गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर-उधर देखा, कोई भी दिखाई नहीं दिया। अचानक उसके पाँव के पास सरसराहट-सी हुई। उसने देखा एक घायल तीतर गेहूँ की बालियों के बीच फंसा छटपटा रहा था।
तीतर को बचाना
विशान वहीं घुटनों के बल बैठ गया। उसने घायल तीतर को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन घबराया हुआ तीतर छिटककर खेत के और अंदर चला गया। विशान जानता था कि शिकारी इस तीतर को ढूँढ़ नहीं पाएंगे और घायल तीतर यहीं तड़प-तड़पकर मर जाएगा। उसने स्वेटर उतारा और मौका देखकर तीतर पर डाल दिया।
तीतर स्वेटर में फंस गया तो विशान ने उसे पकड़ लिया। विशान ने उसे अपने सीने से चिपका लिया और खेत में से निकलकर पहाड़ी की ओर भागने लगा। वह इतना तेज़ चल रहा था मानो उसके पंख लग गए हों।
शिकारी का पीछा
विशान कुछ ही दूर गया कि पीछे से भारी-सी आवाज़ आई, "लड़के, रुक जा, नहीं तो मैं गोली मार दूंगा।" लेकिन विशान नहीं रुका। वह चुपचाप चलता रहा। "रुकता है या नहीं?" उस आदमी ने दुबारा चिल्लाकर कहा। तब तक विशान कंटीले तारों के पास आ गया था।
कंटीले तारों से गुजरना
विशान के लिए आगे निकल भागने का रास्ता नहीं था। अगर वह सड़क से जाता तो शिकारी को साफ दिखाई दे जाता। इसलिए उसने खेतों के छोटे रास्ते से जाना तय किया। खेतों से आगे के रास्ते में काँटेदार झाड़ियाँ थीं। विशान उसी रास्ते पर घुटनों के बल चलने लगा।
बहुत संभलकर चलने पर भी उसके हाथ-पाँव पर काँटों की बहुत-सी खरोंचें उभर आईं। खरोंचों से खून भी निकलने लगा। उसकी कमीज़ की एक आस्तीन भी फट गई। वह जानता था कि कमीज़ फटने पर उसे माँ से डाँट खानी पड़ेगी। पर विशान को इस बात का संतोष था कि वह अब तक तीतर की जान बचाने में कामयाब रहा।
सुरक्षित स्थान पहुंचना
विशान थककर वहीं एक किनारे बैठ गया। अभी वह बैठा ही था कि उसे पाँवों की आहट सुनाई दी। आहट सुनते ही वह उठकर दौड़ पड़ा। दौड़ते-दौड़ते वह आधी पहाड़ी पार कर चुका था। उसके कपड़े पसीने से तर-ब-तर हो गए, फिर भी वह रुका नहीं और किसी तरह कर्नल दत्ता के फार्म हाउस के पिछवाड़े पहुंच ही गया।
कर्नल दत्ता के फार्म हाउस में
फार्म हाउस में खामोशी थी। बस, रसोई घर से प्रेशर कुकर की सीटी की आवाज़ आ रही थी। मुर्गियाँ अभी अपने दड़बे में थीं और गुलाब चंद सामने का बरामदा साफ कर रहा था। अचानक कर्नल साहब का अल्सेशियन कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा।
शिकारियों का आना
कर्नल ने कुत्ते को डाँटा, "चुप रहो।" पर वह न माना। पिछले दोनों पाँवों पर खड़े हो वह उछल-उछलकर भौंकने लगा। वे दोनों शिकारी करीब आ गए तो कर्नल ने रौबदार आवाज़ में पूछा, "कौन हो तुम? यहाँ किसलिए आए हो?"
कर्नल दत्ता और शिकारियों की बातचीत
"साहब, हम शिकारी हैं! हर साल यहाँ शिकार के लिए आते हैं।" "अच्छा--- तो तुम्हीं लोगों की गोलियों की आवाज़ें गूँज रही थीं सुबह से!" "जी हाँ, हमारे पास लाइसेंस वाली बंदूकें हैं। सरपंच माधो सिंह भी हमें जानता है।"
कर्नल दत्ता ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और गुस्से से कहा, "कैसे हो तुम लोग, हर साल आकर इतने तीतर मार डालते हो! कुछ को खा लेते हो, और बाकी को घायल करके यहाँ तड़प-तड़पकर मरने के लिए छोड़ जाते हो।"
तीतर को दिखाना
तभी विशान छप्पर से शेड पर होता हुआ नीचे कूद पड़ा। उसने तीतर को उठा लिया और घर में घुसते ही मालकिन को पुकारने लगा, "बहूजी! बहूजी! जल्दी आइए, यह बहुत घायल है, आकर इसे देखिए!"
इलाज
कर्नल साहब मुस्करा दिए। उन्होंने घायल तीतर को देखा। उसका एक पंख टूट गया था। अब शायद ही वह उड़ सके। "जाओ, दवाइयों का बक्सा लेकर आओ।" विशान दौड़कर बक्सा ले आया। कर्नल दत्ता ने तीतर के पैरों का घाव साफ किया। फिर दवाई लगा दी। पंख को फैलाकर टेप लगा दिया ताकि वह ज्यादा हिले-डुले नहीं।
देखभाल के निर्देश
फिर उन्होंने विशान से कहा, "विशान, अगर तुम इसे गेंदे के पत्तों का रस दिन में दो-तीन बार पिलाओगे तो यह जल्दी ठीक हो जाएगा।" तब तक बहूजी एक कटोरी में दलिया ले आईं और तीतर को दलिया खिलाते हुए बोलीं, "इसे रोज़ दलिया भी खिलाना विशान, तीतर को दलिया बहुत पसंद होता है।"
खुशी का माहौल
"तब तो यह विशान के पीछे-पीछे ही घूमता रहेगा," कर्नल ने हँसते हुए कहा। "अच्छा विशान, तुम जानते हो तीतर कैसे बोलता है?" बहूजी ने पूछा। विशान ने अपने हाथों को मुँह पर रखकर तीतर की आवाज़ निकाली, "क्वाक--- क्वाक--- क्वाक---" कर्नल दत्ता ठहाका मारकर हँस पड़े।
बहूजी भी मुँह पर पल्लू रखकर हँसने लगीं। विशान भी हँसता हुआ हिरन की तरह छलांगें लगाता तीतर के साथ वहाँ से अपने घर की ओर भाग चला।
विशान की माँ की प्रतिक्रिया
विशान की आवाज़ सुनकर कर्नल दत्ता भी अंदर जा पहुंचे और बोले, "अच्छा! तो तीतर चुराने वाला लड़का तू ही था!" "क्या करता बाबूजी, इसे बहुत चोट लगी है! अगर मैं न लाता तो यह मर जाता!" "अब तू इसका क्या करेगा?" "इसे पालूंगा बाबूजी," विशान ने कहा।
माँ ने पूछा, "अब तू इसका क्या करेगा?" "इसे पालूंगा बाबूजी," विशान ने कहा। कर्नल साहब मुस्करा दिए। उन्होंने घायल तीतर को देखा। उसका एक पंख टूट गया था। अब शायद ही वह उड़ सके।
सरल शब्दों की व्याख्या
कीटनाशक दवा - Pesticide, एक रसायन जो पेड़-पौधों को कीड़े-मकोड़ों से बचाने के लिए उपयोग किया जाता है।
घाटी - Valley, पहाड़ों के बीच का समतल भाग।
पगडंडी - Footpath, संकरा रास्ता जो पैदल चलने के लिए बना होता है।
सरसराहट - Rustling sound, हल्की आवाज़ जो चीजों के आपस में रगड़ने से आती है।
तड़प-तड़पकर - Writhing in pain, दर्द से बेचैन होकर।
अल्सेशियन - Alsatian, एक प्रकार का कुत्ता जो बहुत वफादार और बुद्धिमान होता है।
रौबदार - Authoritative, प्रभावशाली और आदेश देने वाला।
लाइसेंस - License, सरकारी अनुमति पत्र।
सरपंच - Village head, गाँव का मुखिया।
रात भर बिलखते-चिंघाड़ते रहे
हाथियों का जीवन
उड़ीसा राज्य के सिम्प्लीपाल टाइगर रिजर्व में पच्चीस हाथियों का झुंड रहता था। इस झुंड में कुछ धुई भी थीं। जिन हथिनियों के साथ दुधमुंहे बच्चे हों उन्हें धुई कहते हैं। दाँव लगे तो हाथी के छोटे बच्चे को शेर मार लेता है। झुंड के बड़े दांतैल और बड़ी हथिनियाँ बच्चों की रक्षा करती हैं।
भोजन की तलाश
सर्दियों में जब घास कम हो जाती है तो हाथियों के बड़े झुंड को जंगल के एक खंड में काफी खाना नहीं मिलता। वे छोटी टोलियों में बंटकर अलग-अलग वनखंडों में चरने चले जाते हैं।
छोटे हाथी का परिचय
1988 के दिसंबर महीने का पहला सप्ताह गुजर रहा था। उन दिनों सिम्प्लीपाल जंगलों के हाथी दो टोलियों में बंट कर बारकमारा-तिनाधिया सड़क के साथ चौड़े में चर रहे थे। एक धुई दो साल का बच्चा था। झुंड में सबसे छोटा यही था। वह माँ का दूध चूंघता था।
शेर का हमला
इस बच्चे ने जंगल की घास-पत्ती को मुंह लगाना शुरू कर दिया था। झाड़ियों, पेड़ों और पगडंडियों को जानने-पहचानने की स्वाभाविक इच्छा उसमें पैदा हो चुकी थी। एक सुबह वह अपनी टोली से जरा अलग होकर नाले की तरफ जा रहा था।
रात का दौरा लगाने के बाद इस इलाके का शेर वहीं सो रहा था। वह बच्चे पर झपट पड़ा। बच्चा चिंघाड़ा, उसकी चिंघाड़ सुन कर सभी हाथी उसे बचाने दौड़े। बड़े हाथियों के सामने शेर नहीं टिका। उसे छोड़कर नाले में चला गया।
गंभीर चोट
शेर का हमला इतना जोरदार था कि कुछ ही क्षणों में उसने बच्चे को बुरी तरह जख्मी कर दिया। सबसे बड़ा घाव सिर पर था। समझदार हाथी उसे ऊपरी बारकमारा में रेंजर ऑफिस के सामने ले गए। जंगल के जानवरों की देखभाल और रक्षा करना, रेंज ऑफिसर की जिम्मेदारी होती है।
हाथियों का प्रेम
उसके दफ्तर के सामने पहुंचकर हाथी मानो अपने को सुरक्षित अनुभव कर रहे थे। कुछ देर बाद आधे हाथी चरने चले गए। बाकी हाथी जख्मी बच्चे की निगरानी में वहीं डटे रहे। उसकी माँ सूंड में घास का पूला उठाकर चंवर डुलाती रही जिससे घाव पर मक्खियां न बैठें।
माँ का दुःख
उसकी आँखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी। बच्चा इतना जख्मी हो गया था कि दूध नहीं चूंघ सकता था। जंगल में जानवरों के छोटे-मोटे घाव प्रकृति खुद ठीक कर दिया करती है। पर इस बच्चे के घाव जानलेवा थे। अगले दिन उसने दम तोड़ दिया।
शोक सभा
मरने की खबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफिस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गए। शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आंखें आंसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
अंतिम संस्कार
इस बच्चे ने जंगल की घास-पत्ती को मुंह लगाना शुरू कर दिया था। झाड़ियों, पेड़ों और पगडंडियों को जानने-पहचानने की स्वाभाविक इच्छा उसमें पैदा हो चुकी थी। एक सुबह वह अपनी टोली से जरा अलग होकर नाले की तरफ जा रहा था। रात का दौरा लगाने के बाद इस इलाके का शेर वहीं सो रहा था। वह बच्चे पर झपट पड़ा।
शेर का हमला इतना जोरदार था कि कुछ ही क्षणों में उसने बच्चे को बुरी तरह जख्मी कर दिया। सबसे बड़ा घाव सिर पर था। समझदार हाथी उसे ऊपरी बारकमारा में रेंजर ऑफिस के सामने ले गए। जंगल के जानवरों की देखभाल और रक्षा करना रेंज ऑफिसर की जिम्मेदारी होती है। उसके दफ्तर के सामने पहुंचकर हाथी मानो अपने को सुरक्षित अनुभव कर रहे थे।
कुछ देर बाद आधे हाथी चरने चले गए। बाकी हाथी जख्मी बच्चे की निगरानी में वहीं डटे रहे। उसकी माँ सूंड में घास का पूला उठाकर चंवर डुलाती रही जिससे घाव पर मक्खियां न बैठें। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी। बच्चा इतना जख्मी हो गया था कि दूध नहीं चूंघ सकता था।
जंगल में जानवरों के छोटे-मोटे घाव प्रकृति खुद ठीक कर दिया करती है। पर इस बच्चे के घाव जानलेवा थे। अगले दिन उसने दम तोड़ दिया। मरने की खबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफिस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गए। शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आंखें आंसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
हाथियों का अंतिम प्रेम
इस बच्चे ने जंगल की घास-पत्ती को मुंह लगाना शुरू कर दिया था। झाड़ियों, पेड़ों और पगडंडियों को जानने-पहचानने की स्वाभाविक इच्छा उसमें पैदा हो चुकी थी। एक सुबह वह अपनी टोली से जरा अलग होकर नाले की तरफ जा रहा था। रात का दौरा लगाने के बाद इस इलाके का शेर वहीं सो रहा था। वह बच्चे पर झपट पड़ा।
कुछ देर बाद झाड़ी हाथी चरने चले गए। लेकिन बाकी हाथी जख्मी बच्चे की निगरानी में वहीं डटे रहे। उसकी माँ सूंड में घास का पूला उठाकर चंवर डुलाती रही जिससे घाव पर मक्खियां न बैठें। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी। बच्चा इतना जख्मी हो गया था कि दूध नहीं चूंघ सकता था।
जंगल में जानवरों के छोटे-मोटे घाव प्रकृति खुद ठीक कर दिया करती है। पर इस बच्चे के घाव जानलेवा थे। अगले दिन उसने दम तोड़ दिया। मरने की खबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफिस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गए। शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आंखें आंसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
मरने की खबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफिस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गए। शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आंखें आंसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
सरल शब्दों की व्याख्या
कीटनाशक दवा - Pesticide, एक रसायन जो पेड़-पौधों को कीड़े-मकोड़ों से बचाने के लिए उपयोग किया जाता है।
घाटी - Valley, पहाड़ों के बीच का समतल भाग।
पगडंडी - Footpath, संकरा रास्ता जो पैदल चलने के लिए बना होता है।
सरसराहट - Rustling sound, हल्की आवाज़ जो चीजों के आपस में रगड़ने से आती है।
तड़प-तड़पकर - Writhing in pain, दर्द से बेचैन होकर।
अल्सेशियन - Alsatian, एक प्रकार का कुत्ता जो बहुत वफादार और बुद्धिमान होता है।
रौबदार - Authoritative, प्रभावशाली और आदेश देने वाला।
लाइसेंस - License, सरकारी अनुमति पत्र।
सरपंच - Village head, गाँव का मुखिया।
धुई - Mother elephant with young calf, छोटे बच्चे वाली हथिनी।
दांतैल - Tusker, दांत वाला नर हाथी।
चिंघाड़ना - Trumpeting, हाथी की विशेष आवाज़।
चंवर - Fan, पंखा झलने की क्रिया।
जानलेवा - Life-threatening, जिससे जान का खतरा हो।
शोक सभा - Mourning gathering, दुख मनाने के लिए इकट्ठा होना।