Chapter 14: आलस्यं हि मनुष्याणयायं शरीरस्थः मियान् ररपुथ
Chapter Summary
आलस्यं हि मनुष्याणयायं शरीरस्थः मियान् ररपुथ - Chapter Summary
## परिचय
इस अध्याय में एक प्रेरणादायक कथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम अत्यंत आवश्यक है। पाठ में एक भिक्षुक और दिनक नामक व्यक्ति के संवाद द्वारा यह सिखाया गया है कि सौभाग्य तभी फलदायक होता है जब हम स्वयं प्रयास करते हैं।
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## मुख्य विषयवस्तु
### 1. कथा सारांश
- **प्रारंभ**: अवकाश दिवस के दिन माता-पुत्र के संवाद से पाठ आरंभ होता है, जहाँ माँ बेटे से दिनभर पढ़ाई करने की बात करती है।
- **संवाद**: माँ बताती हैं कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है और परिश्रम से ही जीवन में सफलता मिलती है।
- **मुख्य कथा**: एक भिक्षुक को बहुत सा धन मिल जाता है, परंतु वह स्वयं कुछ न करने की इच्छा प्रकट करता है।
- **दिनक का उत्तर**: वह भिक्षुक को यह समझाता है कि शरीर के हर अंग का उपयोग कर ही सफलता पाई जा सकती है।
- **परिणाम**: भिक्षुक को ज्ञान होता है, वह भीख माँगना छोड़कर मेहनत से जीवन यापन करने लगता है।
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### 2. श्लोक एवं अर्थ
**श्लोक**:
> आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
> नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति॥
**भावार्थ**:
आलस्य मनुष्य के शरीर में स्थित सबसे बड़ा शत्रु है। इसके विपरीत परिश्रम सबसे बड़ा मित्र है, जो किसी भी स्थिति में दुःखी नहीं होने देता।
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### 3. व्याकरण अभ्यास
- **प्रश्नोत्तर अभ्यास** – पाठ पर आधारित लघु प्रश्नोत्तर, ‘आम्’/‘न’ प्रकार के उत्तर, वाक्य रचना।
- **विभक्ति प्रयोग** – द्वितीया विभक्ति का एकवचन, द्विवचन, बहुवचन प्रयोग।
- **शब्दरूप**:
- पुल्लिंग: ग्राम, दभक्कु, बालक
- स्त्रीलिंग: दभका, माला, नारी
- नपुंसकलिंग: फल, जल, हृद
- **सर्वनाम शब्द रूप**: मम, तव, तम्, एतम् आदि।
- **श्लोकों का पठन व स्मरण** – नैतिक शिक्षा के उद्देश्य से।
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## नए शब्द और सरल परिभाषाएँ
| संस्कृत शब्द | अंग्रेजी अर्थ | सरल अंग्रेजी परिभाषा |
|--------------|----------------|------------------------|
| आलस्यं | Laziness | Not wanting to do work |
| दभक्कुः | Beggar | A person who asks for money or food |
| दभकाटनम् | Begging tour | Roaming around asking for alms |
| अततीव | Excessively | Too much or very |
| दिनकः | Wise man | A thoughtful and advising person |
| उद्यमः | Effort | Hard work or trying |
| शरीराङ्गानि | Body parts | Parts of the body |
| दिनाकृतवान् | Refused | Did not agree |
| सौभाग्यम् | Fortune | Good luck |
| रिपुः | Enemy | Someone who harms you |
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## अभ्यास प्रश्न (Practice Questions)
### सरल (Easy)
1. **प्रश्न**: आलस्य किसे कहा गया है?
**उत्तर**: आलस्य को मनुष्य का शरीरस्थ शत्रु कहा गया है।
**विवरण**: यह शत्रु हमारे अंदर रहता है और हमें कार्य न करने देता है।
2. **प्रश्न**: दिनक ने भिक्षुक को क्या सिखाया?
**उत्तर**: दिनक ने उसे परिश्रम का महत्व समझाया और स्वयं प्रयास करने की प्रेरणा दी।
3. **प्रश्न**: सौभाग्य किसे प्राप्त हुआ था?
**उत्तर**: भिक्षुक को सौभाग्य से धन मिला था, पर वह उसे प्रयोग नहीं कर सका।
### मध्यम (Medium)
4. **प्रश्न**: श्लोक के अनुसार मनुष्य का सच्चा मित्र कौन है?
**उत्तर**: परिश्रम या उद्यम ही मनुष्य का सच्चा मित्र है।
5. **प्रश्न**: दभक्कुः को दिनक ने क्या कहा जब उसने अपने हाथ देने से मना कर दिया?
**उत्तर**: दिनक ने उसे बताया कि उसके अंगों का ही मूल्य है, वही वास्तव में अमूल्य धन हैं।
### कठिन (Difficult)
6. **प्रश्न**: भिक्षुक को सौभाग्य प्राप्त होने पर भी वह दुखी क्यों था?
**उत्तर**: क्योंकि उसने स्वयं परिश्रम नहीं किया था, इसलिए वह संतुष्टि और सुख प्राप्त नहीं कर सका।
7. **प्रश्न**: पाठ के माध्यम से विद्यार्थियों को कौन-सी नैतिक शिक्षा मिलती है?
**उत्तर**: केवल सौभाग्य पर्याप्त नहीं है, सफलता के लिए परिश्रम आवश्यक है।
8. **प्रश्न**: ‘नास्त्युद्यमसमो बन्धुः’ का क्या अर्थ है?
**उत्तर**: परिश्रम जैसा कोई मित्र नहीं होता।
### अति कठिन (Very Difficult)
9. **प्रश्न**: पाठ में प्रयुक्त विभक्तियों का प्रयोग उदाहरण सहित समझाइए।
**उत्तर**: जैसे ‘दभक्कुम्’ द्वितीया एकवचन है। इसका प्रयोग क्रिया ‘पश्यति’ के साथ होता है: ‘सः दभक्कुम् पश्यति।’
10. **प्रश्न**: श्लोक का व्याकरणिक विश्लेषण कीजिए।
**उत्तर**:
- आलस्यं – नपुंसकलिंग, एकवचन, कर्ता
- हि – निश्चयार्थक अव्यय
- शरीरस्थः – विशेषण, पुरुष के शरीर में स्थित
- रिपुः – पुल्लिंग, एकवचन, कर्म
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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
परिचय
इस अध्याय में एक प्रेरणादायक कथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम अत्यंत आवश्यक है। पाठ में एक भिक्षुक और दिनक नामक व्यक्ति के संवाद द्वारा यह सिखाया गया है कि सौभाग्य तभी फलदायक होता है जब हम स्वयं प्रयास करते हैं।
मुख्य विषयवस्तु
1. कथा सारांश
- प्रारंभ: अवकाश दिवस के दिन माता-पुत्र के संवाद से पाठ आरंभ होता है, जहाँ माँ बेटे से दिनभर पढ़ाई करने की बात करती है।
- संवाद: माँ बताती हैं कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है और परिश्रम से ही जीवन में सफलता मिलती है।
- मुख्य कथा: एक भिक्षुक को बहुत सा धन मिल जाता है, परंतु वह स्वयं कुछ न करने की इच्छा प्रकट करता है।
- दिनक का उत्तर: वह भिक्षुक को यह समझाता है कि शरीर के हर अंग का उपयोग कर ही सफलता पाई जा सकती है।
- परिणाम: भिक्षुक को ज्ञान होता है, वह भीख माँगना छोड़कर मेहनत से जीवन यापन करने लगता है।
2. श्लोक एवं अर्थ
श्लोक:
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति॥
भावार्थ:
आलस्य मनुष्य के शरीर में स्थित सबसे बड़ा शत्रु है। इसके विपरीत परिश्रम सबसे बड़ा मित्र है, जो किसी भी स्थिति में दुःखी नहीं होने देता।
3. व्याकरण अभ्यास
- प्रश्नोत्तर अभ्यास – पाठ पर आधारित लघु प्रश्नोत्तर, ‘आम्’/‘न’ प्रकार के उत्तर, वाक्य रचना।
- विभक्ति प्रयोग – द्वितीया विभक्ति का एकवचन, द्विवचन, बहुवचन प्रयोग।
- शब्दरूप:
- पुल्लिंग: ग्राम, दभक्कु, बालक
- स्त्रीलिंग: दभका, माला, नारी
- नपुंसकलिंग: फल, जल, हृद
- सर्वनाम शब्द रूप: मम, तव, तम्, एतम् आदि।
- श्लोकों का पठन व स्मरण – नैतिक शिक्षा के उद्देश्य से।
नए शब्द और सरल परिभाषाएँ
संस्कृत शब्द | अंग्रेजी अर्थ | सरल अंग्रेजी परिभाषा |
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आलस्यं | Laziness | Not wanting to do work |
दभक्कुः | Beggar | A person who asks for money or food |
दभकाटनम् | Begging tour | Roaming around asking for alms |
अततीव | Excessively | Too much or very |
दिनकः | Wise man | A thoughtful and advising person |
उद्यमः | Effort | Hard work or trying |
शरीराङ्गानि | Body parts | Parts of the body |
दिनाकृतवान् | Refused | Did not agree |
सौभाग्यम् | Fortune | Good luck |
रिपुः | Enemy | Someone who harms you |
अभ्यास प्रश्न (Practice Questions)
सरल (Easy)
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प्रश्न: आलस्य किसे कहा गया है?
उत्तर: आलस्य को मनुष्य का शरीरस्थ शत्रु कहा गया है।
विवरण: यह शत्रु हमारे अंदर रहता है और हमें कार्य न करने देता है। -
प्रश्न: दिनक ने भिक्षुक को क्या सिखाया?
उत्तर: दिनक ने उसे परिश्रम का महत्व समझाया और स्वयं प्रयास करने की प्रेरणा दी। -
प्रश्न: सौभाग्य किसे प्राप्त हुआ था?
उत्तर: भिक्षुक को सौभाग्य से धन मिला था, पर वह उसे प्रयोग नहीं कर सका।
मध्यम (Medium)
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प्रश्न: श्लोक के अनुसार मनुष्य का सच्चा मित्र कौन है?
उत्तर: परिश्रम या उद्यम ही मनुष्य का सच्चा मित्र है। -
प्रश्न: दभक्कुः को दिनक ने क्या कहा जब उसने अपने हाथ देने से मना कर दिया?
उत्तर: दिनक ने उसे बताया कि उसके अंगों का ही मूल्य है, वही वास्तव में अमूल्य धन हैं।
कठिन (Difficult)
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प्रश्न: भिक्षुक को सौभाग्य प्राप्त होने पर भी वह दुखी क्यों था?
उत्तर: क्योंकि उसने स्वयं परिश्रम नहीं किया था, इसलिए वह संतुष्टि और सुख प्राप्त नहीं कर सका। -
प्रश्न: पाठ के माध्यम से विद्यार्थियों को कौन-सी नैतिक शिक्षा मिलती है?
उत्तर: केवल सौभाग्य पर्याप्त नहीं है, सफलता के लिए परिश्रम आवश्यक है। -
प्रश्न: ‘नास्त्युद्यमसमो बन्धुः’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: परिश्रम जैसा कोई मित्र नहीं होता।
अति कठिन (Very Difficult)
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प्रश्न: पाठ में प्रयुक्त विभक्तियों का प्रयोग उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: जैसे ‘दभक्कुम्’ द्वितीया एकवचन है। इसका प्रयोग क्रिया ‘पश्यति’ के साथ होता है: ‘सः दभक्कुम् पश्यति।’ -
प्रश्न: श्लोक का व्याकरणिक विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:- आलस्यं – नपुंसकलिंग, एकवचन, कर्ता
- हि – निश्चयार्थक अव्यय
- शरीरस्थः – विशेषण, पुरुष के शरीर में स्थित
- रिपुः – पुल्लिंग, एकवचन, कर्म