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Chapter 8: बिरजू महाराज से साक्षात्कार

7th StandardHindi

Chapter Summary

बिरजू महाराज से साक्षात्कार - Chapter Summary

# बिरजू महाराज से साक्षात्कार

## परिचय

बिरजू महाराज भारत के महान कथक नर्तक और गुरु थे। उन्होंने कथक नृत्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। यह साक्षात्कार उनके जीवन संघर्ष, कला की यात्रा और कथक की परंपरा को समझने में मदद करता है।

## बचपन और संघर्ष

बिरजू महाराज का बचपन राजसी ठाठ-बाट से शुरू हुआ था। वे बताते हैं कि "एक जमाना था जब हमलोग छोटे नवाब कहलाते थे। हवेली के दरवाजे पर आठ-आठ सिपाहियों का पहरा होता था।" लेकिन उनके पिता के देहांत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। जिन डिब्बों में कभी तीन-चार लाख के हार होते थे, वे अब खाली पड़े थे।

इस कठिन दौर में उनकी माता जी ने उनका साथ दिया। कभी कर्ज लेते थे तो कभी पुरानी जरी की साड़ियां जलाकर उनके सोने-चांदी के तार बेचते थे। खाने की कमी के बावजूद माता जी हमेशा कहती थीं, "खाने को भले ही चना मिले या कुछ भी न मिले पर अभ्यास जरूर करो।"

## कथक की शिक्षा और गुरु-शिष्य परंपरा

बिरजू महाराज के गुरु उनके पिता अच्छन महाराज, चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज थे। घर में कथक का माहौल होने के कारण औपचारिक प्रशिक्षण शुरू होने से पहले ही वे देख-देखकर कथक सीख गए थे और नवाब के दरबार में नाचने भी लगे थे।

### गुंडा बांधने की परंपरा

कथक में गुरु शिष्यों को गुंडा (ताबीज) बांधते हैं और शिष्य गुरु को भेंट देता है। जब बिरजू महाराज की तालीम शुरू होने की बात आई तो उनके पिता ने कहा, "भेंट मिलने पर ही गुंडा बांधूंगा।" माता जी ने उनके दो कार्यक्रमों की कमाई बाबूजी को भेंट के रूप में दे दी।

बिरजू महाराज ने इस परंपरा को उल्टा कर दिया। वे कई वर्षों तक नृत्य सिखाने के बाद जब देखते हैं कि शिष्य में सच्ची लगन है तभी गुंडा बांधते हैं।

## कथक का इतिहास और विकास

कथक की परंपरा बहुत पुरानी है। 'महाभारत' के आदिपर्व और 'रामायण' में इसकी चर्चा मिलती है। पहले कथक रोचक और अनौपचारिक रूप से कथा कहने का ढंग था जो मंदिरों तक सीमित था।

### लखनऊ घराने की उत्पत्ति

लखनऊ घराने के लोग मूलतः बनारस-इलाहाबाद के बीच हरिया गांव के रहने वाले थे। वहां 989 कथिकों के घर हुआ करते थे। एक प्रसिद्ध कहानी है कि नौ कथिक नाले के पास से गुजर रहे थे कि तीन डाकू वहां आ पहुंचे। कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उनके कथक में मग्न हो गए।

इस घटना के बाद यह पद लोगों में प्रचलित हो गया:
> "बैरिगया नाला जुलुम जोर,
> नौ कथिक नचावें तीन चोर।
> जब तबला बोले धीन-धीन,
> तब एक-एक पर तीन-तीन।"

## संगीत और नृत्य का संबंध

बिरजू महाराज के अनुसार, "गाना, बजाना और नाचना— ये तीनों संगीत का हिस्सा हैं। संगीत में लय होती है। उसका ज्ञान आवश्यक है।" नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है। वे कहते हैं, "नृत्य करना एक तरह से अदृश्य शक्ति को निमंत्रण देना है— कृष्ण, मेरे अंदर समाओ और नाचो।"

### लय का महत्व

लय हमारी हर गतिविधि में होती है। घसियारा घास को हाथ से पकड़कर उस पर हंसिया मारता है और फिर घास हटाता है। मारने और हटाने की इस लय में जरा भी गड़बड़ी हुई नहीं कि उसका हाथ गया। लय एक तरह का आवरण है जो नृत्य को सुंदरता प्रदान करती है।

## नृत्य में नवाचार

बिरजू महाराज ने कथक की पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए। उन्होंने अपने चाचा और पिता की भाव-भंगिमाओं को भी कथक में शामिल किया। टैगोर, त्यागराज आदि आधुनिक कवियों की रचनाओं को लेकर भी कथक रचनाएं तैयार कीं।

### भावों की सार्वभौमिकता

बिरजू महाराज कहते हैं, "भाषाएं अलग-अलग होती हैं पर इंसान तो सब जगह एक-से होते हैं।" फ्रांस में एक दर्शक ने कहा था, "मैं नहीं जानता कि यशोदा कौन है?" उन्होंने बताया कि इस धरती पर सब माएं यशोदा हैं और सब नन्हें बच्चे कृष्ण।

## भारतीय शास्त्रीय नृत्य की विविधता

बिरजू महाराज ने भारत की विभिन्न शास्त्रीय नृत्य शैलियों के बारे में बताया:

### प्रमुख नृत्य शैलियां

1. **कथक** - उत्तर भारत की शैली
2. **भरतनाट्यम** - दक्षिण भारत की शैली
3. **कुचिपुड़ी** - आंध्र प्रदेश की शैली
4. **कथकली** - केरल की शैली
5. **मोहिनीअट्टम** - केरल की शैली
6. **ओडिसी** - ओडिशा की शैली
7. **मणिपुरी** - मणिपुर की शैली

### लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य में अंतर

लोक नृत्य सामूहिक होता है। दिनभर की मेहनत के बाद लोग थकान दूर करने और मनोरंजन के लिए इकट्ठा मिलकर नाचते हैं। दूसरी ओर शास्त्रीय नृत्य में एक नर्तक अकेला ही काफी होता है। लोक नृत्य नाचने वालों के अपने मन बहलाव और संतुष्टि के लिए होता है जबकि शास्त्रीय नृत्य दर्शकों के लिए होता है।

## कथक प्रशिक्षण की आधुनिक चुनौतियां

बिरजू महाराज ने पहले और अब के कथक प्रशिक्षण में अंतर बताया। पहले मंच नहीं होते थे। फर्श पर चांदनी बिछी होती थी जिस पर कथक होता था और दर्शक चारों ओर बैठते थे। श्रृंगार के लिए चंदनलेप और होंठ रंगने के लिए पान होता था।

पहले नर्तक कथा के दृश्यों का विस्तृत वर्णन करते थे कि दर्शक के सामने पूरा दृश्य खिंच जाता था। अब सिर्फ 'पनघट की गत देखो' कहकर बाकी दर्शक की कल्पना पर छोड़ दिया जाता है।

## व्यक्तिगत रुचियां और शौक

बिरजू महाराज सिर्फ नर्तक नहीं थे। उन्होंने बताया कि वे कभी खाली नहीं होते। नींद में भी हाथ चलता रहता है। मशीनों में मन खूब लगता है। वे अपने ब्रीफकेस में हमेशा पेचकस और दूसरे छोटे-मोटे औजार रखते थे।

रात बारह बजे के बाद वे चित्र बनाने बैठते थे। पिछले दो वर्षों में उन्होंने लगभग सत्तर चित्र बनाए थे।

## बच्चों के लिए संदेश

बिरजू महाराज ने माता-पिता से विनती की कि यदि बच्चे की रुचि है तो उसे लय के साथ खेलने दें। जैसे अन्य खेल हैं वैसे ही यह भी एक खेल है, जिसमें बहुत-कुछ सीखने को मिलता है। इस खेल की दुनिया में संतुलन, समय का अंदाजा व सदुपयोग बच्चे के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

### लड़कियों की शिक्षा के बारे में

बिरजू महाराज ने अपनी बेटियों को खूब सिखाया। उनका मानना था कि लड़कियों के पास शिक्षा या कोई-न-कोई हुनर अवश्य होना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें। हुनर ऐसा खजाना है जिसे कोई नहीं छीन सकता और वक्त पड़ने पर काम आता है।

## संगीत और नृत्य का जीवन में महत्व

बिरजू महाराज कहते हैं, "लय हमें अनुशासन सिखाती है, संतुलन सिखाती है। नाचने, गाने और बजाने वाले एक-दूसरे के साथ तालमेल बैठाकर एक नई रचना करते हैं। सुर और लय से हमें एक-दूसरे का सहयोगी बनकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।"

---

## नए शब्दों और पारिभाषिक शब्दों की सूची

| शब्द | अर्थ |
|------|------|
| साक्षात्कार | Interview - किसी व्यक्ति से प्रश्न-उत्तर के रूप में बातचीत |
| कथक | Classical dance form - भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक शैली |
| गुंडा | Amulet/Talisman - ताबीज, जो गुरु अपने शिष्य को पहनाते हैं |
| घराना | School/Tradition - संगीत या नृत्य की विशिष्ट परंपरा |
| लय | Rhythm - ताल, समय की गति |
| भाव-भंगिमा | Expressions and gestures - चेहरे के भाव और शरीर की मुद्राएं |
| प्रस्तुतीकरण | Presentation - प्रदर्शन का तरीका |
| शास्त्रीय | Classical - परंपरागत नियमों पर आधारित |
| लोक नृत्य | Folk dance - जन-सामान्य द्वारा किया जाने वाला नृत्य |
| तालीम | Training - शिक्षा, प्रशिक्षण |
| मुद्रा | Posture/Gesture - हाथ और शरीर की विशेष स्थिति |
| अभ्यास | Practice - रियाज, अभ्यास |
| कथावाचक | Storyteller - कहानी सुनाने वाला |
| दर्शक | Audience - देखने वाले लोग |
| संगत | Accompaniment - साथ दिया जाने वाला संगीत |

बिरजू महाराज से साक्षात्कार

परिचय

बिरजू महाराज भारत के महान कथक नर्तक और गुरु थे। उन्होंने कथक नृत्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। यह साक्षात्कार उनके जीवन संघर्ष, कला की यात्रा और कथक की परंपरा को समझने में मदद करता है।

बचपन और संघर्ष

बिरजू महाराज का बचपन राजसी ठाठ-बाट से शुरू हुआ था। वे बताते हैं कि "एक जमाना था जब हमलोग छोटे नवाब कहलाते थे। हवेली के दरवाजे पर आठ-आठ सिपाहियों का पहरा होता था।" लेकिन उनके पिता के देहांत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। जिन डिब्बों में कभी तीन-चार लाख के हार होते थे, वे अब खाली पड़े थे।

इस कठिन दौर में उनकी माता जी ने उनका साथ दिया। कभी कर्ज लेते थे तो कभी पुरानी जरी की साड़ियां जलाकर उनके सोने-चांदी के तार बेचते थे। खाने की कमी के बावजूद माता जी हमेशा कहती थीं, "खाने को भले ही चना मिले या कुछ भी न मिले पर अभ्यास जरूर करो।"

कथक की शिक्षा और गुरु-शिष्य परंपरा

बिरजू महाराज के गुरु उनके पिता अच्छन महाराज, चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज थे। घर में कथक का माहौल होने के कारण औपचारिक प्रशिक्षण शुरू होने से पहले ही वे देख-देखकर कथक सीख गए थे और नवाब के दरबार में नाचने भी लगे थे।

गुंडा बांधने की परंपरा

कथक में गुरु शिष्यों को गुंडा (ताबीज) बांधते हैं और शिष्य गुरु को भेंट देता है। जब बिरजू महाराज की तालीम शुरू होने की बात आई तो उनके पिता ने कहा, "भेंट मिलने पर ही गुंडा बांधूंगा।" माता जी ने उनके दो कार्यक्रमों की कमाई बाबूजी को भेंट के रूप में दे दी।

बिरजू महाराज ने इस परंपरा को उल्टा कर दिया। वे कई वर्षों तक नृत्य सिखाने के बाद जब देखते हैं कि शिष्य में सच्ची लगन है तभी गुंडा बांधते हैं।

कथक का इतिहास और विकास

कथक की परंपरा बहुत पुरानी है। 'महाभारत' के आदिपर्व और 'रामायण' में इसकी चर्चा मिलती है। पहले कथक रोचक और अनौपचारिक रूप से कथा कहने का ढंग था जो मंदिरों तक सीमित था।

लखनऊ घराने की उत्पत्ति

लखनऊ घराने के लोग मूलतः बनारस-इलाहाबाद के बीच हरिया गांव के रहने वाले थे। वहां 989 कथिकों के घर हुआ करते थे। एक प्रसिद्ध कहानी है कि नौ कथिक नाले के पास से गुजर रहे थे कि तीन डाकू वहां आ पहुंचे। कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उनके कथक में मग्न हो गए।

इस घटना के बाद यह पद लोगों में प्रचलित हो गया:

"बैरिगया नाला जुलुम जोर, नौ कथिक नचावें तीन चोर। जब तबला बोले धीन-धीन, तब एक-एक पर तीन-तीन।"

संगीत और नृत्य का संबंध

बिरजू महाराज के अनुसार, "गाना, बजाना और नाचना— ये तीनों संगीत का हिस्सा हैं। संगीत में लय होती है। उसका ज्ञान आवश्यक है।" नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है। वे कहते हैं, "नृत्य करना एक तरह से अदृश्य शक्ति को निमंत्रण देना है— कृष्ण, मेरे अंदर समाओ और नाचो।"

लय का महत्व

लय हमारी हर गतिविधि में होती है। घसियारा घास को हाथ से पकड़कर उस पर हंसिया मारता है और फिर घास हटाता है। मारने और हटाने की इस लय में जरा भी गड़बड़ी हुई नहीं कि उसका हाथ गया। लय एक तरह का आवरण है जो नृत्य को सुंदरता प्रदान करती है।

नृत्य में नवाचार

बिरजू महाराज ने कथक की पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए। उन्होंने अपने चाचा और पिता की भाव-भंगिमाओं को भी कथक में शामिल किया। टैगोर, त्यागराज आदि आधुनिक कवियों की रचनाओं को लेकर भी कथक रचनाएं तैयार कीं।

भावों की सार्वभौमिकता

बिरजू महाराज कहते हैं, "भाषाएं अलग-अलग होती हैं पर इंसान तो सब जगह एक-से होते हैं।" फ्रांस में एक दर्शक ने कहा था, "मैं नहीं जानता कि यशोदा कौन है?" उन्होंने बताया कि इस धरती पर सब माएं यशोदा हैं और सब नन्हें बच्चे कृष्ण।

भारतीय शास्त्रीय नृत्य की विविधता

बिरजू महाराज ने भारत की विभिन्न शास्त्रीय नृत्य शैलियों के बारे में बताया:

प्रमुख नृत्य शैलियां

  1. कथक - उत्तर भारत की शैली
  2. भरतनाट्यम - दक्षिण भारत की शैली
  3. कुचिपुड़ी - आंध्र प्रदेश की शैली
  4. कथकली - केरल की शैली
  5. मोहिनीअट्टम - केरल की शैली
  6. ओडिसी - ओडिशा की शैली
  7. मणिपुरी - मणिपुर की शैली

लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य में अंतर

लोक नृत्य सामूहिक होता है। दिनभर की मेहनत के बाद लोग थकान दूर करने और मनोरंजन के लिए इकट्ठा मिलकर नाचते हैं। दूसरी ओर शास्त्रीय नृत्य में एक नर्तक अकेला ही काफी होता है। लोक नृत्य नाचने वालों के अपने मन बहलाव और संतुष्टि के लिए होता है जबकि शास्त्रीय नृत्य दर्शकों के लिए होता है।

कथक प्रशिक्षण की आधुनिक चुनौतियां

बिरजू महाराज ने पहले और अब के कथक प्रशिक्षण में अंतर बताया। पहले मंच नहीं होते थे। फर्श पर चांदनी बिछी होती थी जिस पर कथक होता था और दर्शक चारों ओर बैठते थे। श्रृंगार के लिए चंदनलेप और होंठ रंगने के लिए पान होता था।

पहले नर्तक कथा के दृश्यों का विस्तृत वर्णन करते थे कि दर्शक के सामने पूरा दृश्य खिंच जाता था। अब सिर्फ 'पनघट की गत देखो' कहकर बाकी दर्शक की कल्पना पर छोड़ दिया जाता है।

व्यक्तिगत रुचियां और शौक

बिरजू महाराज सिर्फ नर्तक नहीं थे। उन्होंने बताया कि वे कभी खाली नहीं होते। नींद में भी हाथ चलता रहता है। मशीनों में मन खूब लगता है। वे अपने ब्रीफकेस में हमेशा पेचकस और दूसरे छोटे-मोटे औजार रखते थे।

रात बारह बजे के बाद वे चित्र बनाने बैठते थे। पिछले दो वर्षों में उन्होंने लगभग सत्तर चित्र बनाए थे।

बच्चों के लिए संदेश

बिरजू महाराज ने माता-पिता से विनती की कि यदि बच्चे की रुचि है तो उसे लय के साथ खेलने दें। जैसे अन्य खेल हैं वैसे ही यह भी एक खेल है, जिसमें बहुत-कुछ सीखने को मिलता है। इस खेल की दुनिया में संतुलन, समय का अंदाजा व सदुपयोग बच्चे के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

लड़कियों की शिक्षा के बारे में

बिरजू महाराज ने अपनी बेटियों को खूब सिखाया। उनका मानना था कि लड़कियों के पास शिक्षा या कोई-न-कोई हुनर अवश्य होना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें। हुनर ऐसा खजाना है जिसे कोई नहीं छीन सकता और वक्त पड़ने पर काम आता है।

संगीत और नृत्य का जीवन में महत्व

बिरजू महाराज कहते हैं, "लय हमें अनुशासन सिखाती है, संतुलन सिखाती है। नाचने, गाने और बजाने वाले एक-दूसरे के साथ तालमेल बैठाकर एक नई रचना करते हैं। सुर और लय से हमें एक-दूसरे का सहयोगी बनकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।"


नए शब्दों और पारिभाषिक शब्दों की सूची

शब्दअर्थ
साक्षात्कारInterview - किसी व्यक्ति से प्रश्न-उत्तर के रूप में बातचीत
कथकClassical dance form - भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक शैली
गुंडाAmulet/Talisman - ताबीज, जो गुरु अपने शिष्य को पहनाते हैं
घरानाSchool/Tradition - संगीत या नृत्य की विशिष्ट परंपरा
लयRhythm - ताल, समय की गति
भाव-भंगिमाExpressions and gestures - चेहरे के भाव और शरीर की मुद्राएं
प्रस्तुतीकरणPresentation - प्रदर्शन का तरीका
शास्त्रीयClassical - परंपरागत नियमों पर आधारित
लोक नृत्यFolk dance - जन-सामान्य द्वारा किया जाने वाला नृत्य
तालीमTraining - शिक्षा, प्रशिक्षण
मुद्राPosture/Gesture - हाथ और शरीर की विशेष स्थिति
अभ्यासPractice - रियाज, अभ्यास
कथावाचकStoryteller - कहानी सुनाने वाला
दर्शकAudience - देखने वाले लोग
संगतAccompaniment - साथ दिया जाने वाला संगीत