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Chapter 8: हितं मनोहारि च दर्लभं वचः

7th StandardSanskrit

Chapter Summary

हितं मनोहारि च दर्लभं वचः - Chapter Summary

# हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः

## Overview
इस पाठ में संस्कृत की सुंदर और ज्ञानवर्धक सूक्तियों का संकलन है जो हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन देती हैं। ये सूक्तियाँ विभिन्न ग्रंथों से ली गई हैं और इनका प्रयोग जीवन को श्रेष्ठ बनाने में किया जा सकता है। पाठ का उद्देश्य है विद्यार्थियों को नैतिकता, ज्ञान, समय का सदुपयोग और गुणों की महत्ता को समझाना।

## Key Topics Covered

### 1. सूक्तिः – जीवन का मूल मूल्य
- **अर्थ**: 'सूक्ति' का अर्थ होता है सुंदर और हितकारी वचन। ये जीवन का मार्गदर्शन करने वाली शिक्षाएं होती हैं।
- **उदाहरण**: "सत्यं वद, धर्मं चर" – यह माताजी द्वारा बताए गए एक महत्वपूर्ण सूक्ति का उदाहरण है।

### 2. पृथ्वी माता – पर्यावरण चेतना
- **सूक्ति**: माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।
- **भावार्थ**: पृथ्वी हमारी माता है और हम सभी उसके पुत्र हैं। अतः हमें उसकी पूजा और रक्षा करनी चाहिए।

### 3. रत्नों की खोज नहीं, गुणों की पहचान
- **सूक्ति**: न रत्नमन्विष्यति मृगयते हि तत्।
- **भावार्थ**: रत्न अपने आप मिलने वाले नहीं होते, उन्हें खोजा जाता है। वैसे ही गुणों को भी पहचानने और अपनाने के लिए प्रयास करना पड़ता है।

### 4. शरीर – धर्म पालन का साधन
- **सूक्ति**: शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
- **भावार्थ**: हमारा शरीर धर्म पालन का पहला साधन है। यदि शरीर स्वस्थ है तभी हम अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं।

### 5. समय और प्रयास की महत्ता
- **सूक्ति**: क्षणशः कणशश्चैव विद्यां अर्थं च साधयेत्।
- **भावार्थ**: समय और प्रयास का महत्व अत्यंत है। थोड़ा-थोड़ा करके ज्ञान और धन दोनों अर्जित किए जा सकते हैं।

### 6. ज्ञान और सुख का संबंध
- **सूक्ति**: सुखार्थी त्यजेत् विद्याम्, विद्यार्थी त्यजेत् सुखम्।
- **भावार्थ**: सुख की चाह में यदि कोई विद्या छोड़ता है तो उसे न विद्या मिलती है, न ही सच्चा सुख।

### 7. गुण – सम्मान का आधार
- **सूक्ति**: गुणाः पूजास्थानियं, गुणेषु न च लिङ्गं न च वयः।
- **भावार्थ**: गुणों के आधार पर ही सम्मान मिलता है, न कि लिंग या आयु के आधार पर।

### 8. दीन की उपेक्षा न करें
- **सूक्ति**: मा ब्रूहि दीनं त्वमसि।
- **भावार्थ**: किसी को भी दीन या कमजोर मत कहो, सबका सम्मान करो।

### 9. ज्ञानवान वही जो आचरण करता है
- **सूक्ति**: यस्य न क्रियावान् पुरुषः स विद्वान्।
- **भावार्थ**: केवल पढ़ना ही विद्या नहीं है, बल्कि उस ज्ञान का आचरण भी जरूरी है।

### 10. चरित्र – सबसे बड़ा आभूषण
- **सूक्ति**: शीलं परं भूषणम्।
- **भावार्थ**: आचरण या चरित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा गहना है।

### 11. हित और मनोरंजन – दुर्लभ संतुलन
- **सूक्ति**: हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
- **भावार्थ**: ऐसा वचन जो हितकारी भी हो और मन को भाए, बहुत ही दुर्लभ होता है।


---


## Keywords (मुख्य शब्दाः)

| Sanskrit (संस्कृतम्) | English (अंग्रेज़ी) |
|--------------------------|-------------------------------|
| सूक्तिः | moral saying |
| धर्मः | duty / righteousness |
| शरीरम् | body |
| रत्नम् | jewel |
| गुणः | virtue / quality |
| शीलम् | character |
| विद्या | knowledge |
| समयः | time |
| कणः | particle |
| क्षणः | moment |
| माता भूमिः | mother earth |
| पुत्रः | son |
| मनोहारि | pleasing |
| दुर्लभम् | rare |
| पाञ्चतन्त्रम् | Panchatantra |
| कुमारसम्भवः | Kumarasambhava (epic) |
| नीति शतकम् | Niti Shatakam (ethics verse) |

---

## New Words / Terms (सरल अर्थ सहित)

| Word (शब्दः) | Simple Meaning (सरल अर्थ) |
|-------------------------|----------------------------|
| सूक्तिः | सुंदर और ज्ञानयुक्त कथन (Beautiful and wise saying) |
| धर्मसाधनम् | धर्म पालन का साधन (Means to follow righteousness) |
| कणः | अति छोटा अंश (Tiny part or particle) |
| क्षणः | बहुत छोटा समय (Moment) |
| गुणः | अच्छाई या विशेषता (Virtue or quality) |
| शीलम् | अच्छा आचरण (Good conduct) |
| मनोहारि | मन को भाने वाला (Attractive to the mind) |
| दुर्लभम् | जो आसानी से न मिले (Rare) |
| क्रियावान् | जो आचरण में लाए (One who acts) |
| मातृभूः | जननी भूमि (Motherland) |

---

## Practice Questions (अभ्यास प्रश्नाः)

### Easy (सरल)

1. **शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।** — इस सूक्ति का भावार्थ क्या है?
→ शरीर ही धर्म पालन का प्रथम साधन है।

2. **“शीलं परं भूषणम्” का अर्थ क्या है?**
→ चरित्र सबसे बड़ा आभूषण है।

3. **सुख की इच्छा रखने वाला क्या त्याग देता है?**
→ विद्या।

### Medium (मध्यम)

4. **“क्षणशः कणशश्चैव विद्यां अर्थं च साधयेत्।” से क्या सिखने को मिलता है?**
→ निरंतर प्रयास से ही विद्या और धन की प्राप्ति होती है।

5. **“गुणाः पूजास्थानियं” से क्या तात्पर्य है?**
→ व्यक्ति के गुण ही उसे पूजनीय बनाते हैं, न कि उसका रूप, लिंग या आयु।

### Difficult (कठिन)

6. **“हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः” क्यों कहा गया है?**
→ क्योंकि ऐसे वचन जो हितकारी भी हों और सुनने में अच्छे भी लगें, बहुत कम होते हैं।

7. **किसे वास्तव में विद्वान कहा गया है?**
→ जो अपने ज्ञान को आचरण में लाता है।

8. **“न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत्” का जीवन में क्या महत्व है?**
→ हमें रत्नों (गुणों) की तरह अच्छे गुणों की भी खोज करनी चाहिए, वे अपने आप नहीं मिलते।

### Very Difficult (अत्यंत कठिन)

9. **समाज में "मा ब्रूहि दीनं त्वमसि" का क्या महत्व है?**
→ इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी को नीचा नहीं दिखाना चाहिए, सबके साथ सहानुभूति रखनी चाहिए।

10. **विद्या और सुख का संतुलन क्यों आवश्यक है?**
→ क्योंकि केवल सुख भोगने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति न विद्या प्राप्त कर सकता है और न ही स्थायी सुख।

---

हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः

Overview

इस पाठ में संस्कृत की सुंदर और ज्ञानवर्धक सूक्तियों का संकलन है जो हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन देती हैं। ये सूक्तियाँ विभिन्न ग्रंथों से ली गई हैं और इनका प्रयोग जीवन को श्रेष्ठ बनाने में किया जा सकता है। पाठ का उद्देश्य है विद्यार्थियों को नैतिकता, ज्ञान, समय का सदुपयोग और गुणों की महत्ता को समझाना।

Key Topics Covered

1. सूक्तिः – जीवन का मूल मूल्य

  • अर्थ: 'सूक्ति' का अर्थ होता है सुंदर और हितकारी वचन। ये जीवन का मार्गदर्शन करने वाली शिक्षाएं होती हैं।
  • उदाहरण: "सत्यं वद, धर्मं चर" – यह माताजी द्वारा बताए गए एक महत्वपूर्ण सूक्ति का उदाहरण है।

2. पृथ्वी माता – पर्यावरण चेतना

  • सूक्ति: माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।
  • भावार्थ: पृथ्वी हमारी माता है और हम सभी उसके पुत्र हैं। अतः हमें उसकी पूजा और रक्षा करनी चाहिए।

3. रत्नों की खोज नहीं, गुणों की पहचान

  • सूक्ति: न रत्नमन्विष्यति मृगयते हि तत्।
  • भावार्थ: रत्न अपने आप मिलने वाले नहीं होते, उन्हें खोजा जाता है। वैसे ही गुणों को भी पहचानने और अपनाने के लिए प्रयास करना पड़ता है।

4. शरीर – धर्म पालन का साधन

  • सूक्ति: शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
  • भावार्थ: हमारा शरीर धर्म पालन का पहला साधन है। यदि शरीर स्वस्थ है तभी हम अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं।

5. समय और प्रयास की महत्ता

  • सूक्ति: क्षणशः कणशश्चैव विद्यां अर्थं च साधयेत्।
  • भावार्थ: समय और प्रयास का महत्व अत्यंत है। थोड़ा-थोड़ा करके ज्ञान और धन दोनों अर्जित किए जा सकते हैं।

6. ज्ञान और सुख का संबंध

  • सूक्ति: सुखार्थी त्यजेत् विद्याम्, विद्यार्थी त्यजेत् सुखम्।
  • भावार्थ: सुख की चाह में यदि कोई विद्या छोड़ता है तो उसे न विद्या मिलती है, न ही सच्चा सुख।

7. गुण – सम्मान का आधार

  • सूक्ति: गुणाः पूजास्थानियं, गुणेषु न च लिङ्गं न च वयः।
  • भावार्थ: गुणों के आधार पर ही सम्मान मिलता है, न कि लिंग या आयु के आधार पर।

8. दीन की उपेक्षा न करें

  • सूक्ति: मा ब्रूहि दीनं त्वमसि।
  • भावार्थ: किसी को भी दीन या कमजोर मत कहो, सबका सम्मान करो।

9. ज्ञानवान वही जो आचरण करता है

  • सूक्ति: यस्य न क्रियावान् पुरुषः स विद्वान्।
  • भावार्थ: केवल पढ़ना ही विद्या नहीं है, बल्कि उस ज्ञान का आचरण भी जरूरी है।

10. चरित्र – सबसे बड़ा आभूषण

  • सूक्ति: शीलं परं भूषणम्।
  • भावार्थ: आचरण या चरित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा गहना है।

11. हित और मनोरंजन – दुर्लभ संतुलन

  • सूक्ति: हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
  • भावार्थ: ऐसा वचन जो हितकारी भी हो और मन को भाए, बहुत ही दुर्लभ होता है।

Keywords (मुख्य शब्दाः)

Sanskrit (संस्कृतम्)English (अंग्रेज़ी)
सूक्तिःmoral saying
धर्मःduty / righteousness
शरीरम्body
रत्नम्jewel
गुणःvirtue / quality
शीलम्character
विद्याknowledge
समयःtime
कणःparticle
क्षणःmoment
माता भूमिःmother earth
पुत्रःson
मनोहारिpleasing
दुर्लभम्rare
पाञ्चतन्त्रम्Panchatantra
कुमारसम्भवःKumarasambhava (epic)
नीति शतकम्Niti Shatakam (ethics verse)

New Words / Terms (सरल अर्थ सहित)

Word (शब्दः)Simple Meaning (सरल अर्थ)
सूक्तिःसुंदर और ज्ञानयुक्त कथन (Beautiful and wise saying)
धर्मसाधनम्धर्म पालन का साधन (Means to follow righteousness)
कणःअति छोटा अंश (Tiny part or particle)
क्षणःबहुत छोटा समय (Moment)
गुणःअच्छाई या विशेषता (Virtue or quality)
शीलम्अच्छा आचरण (Good conduct)
मनोहारिमन को भाने वाला (Attractive to the mind)
दुर्लभम्जो आसानी से न मिले (Rare)
क्रियावान्जो आचरण में लाए (One who acts)
मातृभूःजननी भूमि (Motherland)

Practice Questions (अभ्यास प्रश्नाः)

Easy (सरल)

  1. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। — इस सूक्ति का भावार्थ क्या है?
    → शरीर ही धर्म पालन का प्रथम साधन है।

  2. “शीलं परं भूषणम्” का अर्थ क्या है?
    → चरित्र सबसे बड़ा आभूषण है।

  3. सुख की इच्छा रखने वाला क्या त्याग देता है?
    → विद्या।

Medium (मध्यम)

  1. “क्षणशः कणशश्चैव विद्यां अर्थं च साधयेत्।” से क्या सिखने को मिलता है?
    → निरंतर प्रयास से ही विद्या और धन की प्राप्ति होती है।

  2. “गुणाः पूजास्थानियं” से क्या तात्पर्य है?
    → व्यक्ति के गुण ही उसे पूजनीय बनाते हैं, न कि उसका रूप, लिंग या आयु।

Difficult (कठिन)

  1. “हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः” क्यों कहा गया है?
    → क्योंकि ऐसे वचन जो हितकारी भी हों और सुनने में अच्छे भी लगें, बहुत कम होते हैं।

  2. किसे वास्तव में विद्वान कहा गया है?
    → जो अपने ज्ञान को आचरण में लाता है।

  3. “न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत्” का जीवन में क्या महत्व है?
    → हमें रत्नों (गुणों) की तरह अच्छे गुणों की भी खोज करनी चाहिए, वे अपने आप नहीं मिलते।

Very Difficult (अत्यंत कठिन)

  1. समाज में "मा ब्रूहि दीनं त्वमसि" का क्या महत्व है?
    → इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी को नीचा नहीं दिखाना चाहिए, सबके साथ सहानुभूति रखनी चाहिए।

  2. विद्या और सुख का संतुलन क्यों आवश्यक है?
    → क्योंकि केवल सुख भोगने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति न विद्या प्राप्त कर सकता है और न ही स्थायी सुख।